तुम्हारी शादी का कार्ड,
पिला रंग, सुनहरे अक्षर,
और तुम्हारे नाम के साथ लिखा हुआ
किसी अन्य का नाम,
खुश रहो तुम सदैव,
मेरी एक भी स्मृति तुममें न रहे,
मैं अपनी इस अपूर्णता को स्वीकार चुका हूँ,
जिसे इसी प्रकार,
हमेशा के लिए रहने देना चाहता हूँ,
प्रेम में ढाई अक्षर हैं
तुम्हारे नाम में भी ढाई अक्षर थे
इसलिए जब तुम प्रेम से मिली
तो तुम्हें पूर्णता मिली,
किंतु मेरे नाम में तीन अक्षर हैं
और प्रेम में ढाई अक्षर हैं
इसलिए मैं जब प्रेम से मिला
तो अपूर्णता का एक अंश मेरे साथ रह गया।
यहां तुमसे मेरा प्रेम नहीं,
बस मेरा प्रेम है,
तुम तनिक भी इसमें हिस्सेदार नहीं हो,
इसलिए इससे मिलने वाली,
पीड़ा की अनुभूति
केवल और मुझे हो,
ईश्वर से यही कामना है
तुम्हारा आने वाला कल प्रकाशमान हो।
- ऋषभ भट्ट ( क़िताब : मैं उसको ढूढूंगा अब कहां?)