Yaad...
घर की मुहानी पर बैठ दिल रुलाती है मेरी,
क्या अब भी तुमको याद आती है मेरी?
हाथों की छुअन से बेचैनी की तपिश मिटाना,
वो मेरा पहली दफा तुझको गले से लगाना,
धानी लहंगे में बसाए निगाहों के चौतरफा दीदार,
कल भी करता था तुझसे आज भी करता हूं प्यार,
हवाएं धूप से जिसको सजाएं,
वो तेरी रौशनी बन याद आए,
दिल को लगता है तू महबूब बुलाती है मेरी,
क्या अब भी तुमको याद आती है मेरी?
होंठों के फूल वो तेरे आने से खिले थे बस,
सात जन्मों के ख्वाब इसी बहने से मिले थे बस,
मेरी चाहतों के दरीचे पर तन्हाइयों का बोलबाला अब,
के तूने दिल की कोठारी से मुझको था निकला जब,
मेरे दिल में कश्मशाती है,
तेरी हर एक बात याद आती है,
जीत की कसौटी पर खरी ज़िद हार जाती है मेरी,
क्या अब भी तुमको याद आती है मेरी?
अश्क फूल बन बाखुदा जिसको चढ़ाती है मेरी,
क्या अब भी तुमको याद आती है मेरी?
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion