वो शाम कुछ अलग थी,
ना कोई शिकवा,
ना कोई शिकायत,
बस हम दोनों साथ थे —
और बीच में ख़ामोशी की एक हल्की सी चादर।
तभी उसने मेरी ओर देखा,
एक हल्की सी मुस्कान के साथ
थोड़ी हिचकिचाहट भी थी,
जैसे कुछ कहना चाह रही हो,
पर ठहर के कहे… ताकि मैं समझ सकूं।
"एक बात कहनी है..."
उसने धीरे से कहा।
मैंने उसकी आँखों में देखा,
वो वही आँखें थीं
जिनमें कभी सिर्फ़ शर्म झलकती थी,
पर आज…
उनमें भरोसे का रंग था।
"पीरियड्स चल रहे हैं…"
उसने झिझकते हुए कहा।
मैंने कुछ नहीं कहा,
बस थोड़ा और क़रीब हो गया,
उसकी हथेली को
अपनी उंगलियों से हल्के से थाम लिया।
"जानता हूं,"
मैंने मुस्कुराकर जवाब दिया।
उसकी आँखों में थोड़ी राहत थी,
फिर बोली —
"पर इस बार कुछ अलग है…"
"पैड्स लगाने से
मेरी स्किन में जलन होने लगी है,
रैशेज़ हो गए हैं —
चलना भी मुश्किल हो गया है कभी-कभी।"
उसने बात को अधूरा नहीं छोड़ा,
क्योंकि वो अब मुझसे नहीं छुपाती थी खुद को।
वो जानती थी —
कि मेरा प्यार उसकी हँसी से नहीं,
उसकी हर तकलीफ़ से है।
"इतना सहेजती हूं खुद को
फिर भी ये दर्द रुकता नहीं,
हर महीने की ये चार-पाँच रातें
जैसे एक सज़ा हो जिसे मैं
हर बार मुस्कुराकर काट जाती हूं।"
"कभी सोचती हूं कि कोई समझे,
पर फिर लगता है —
शायद कोई समझेगा भी कैसे?"
मैंने उसका हाथ और मज़बूती से थामा,
और कहा —
"तुम अकेली नहीं हो।
और अब तुम्हें ये दर्द अकेले नहीं सहना पड़ेगा।"
फिर मैंने अपना मोबाइल उठाया और गूगल पर कुछ सर्च करने के बाद उसे धीरे-धीरे बताने लगा —
"तुम कपड़े के रिपीटेबल पैड्स ट्राय कर सकती है,
जो स्किन फ्रेंडली हों।
या फिर मेंस्ट्रुअल कप्स —
जिनसे रैशेज़ का डर कम होगा।"
"और हाँ,
नारियल का तेल या ऐलोवेरा जेल
लगा लेना रात को सोने से पहले —
जलन भी कम होगी,
और स्किन को भी सुकून मिलेगा।"
"तुम्हारे शरीर को आराम चाहिए,
न कि सिर्फ़ दवाई…"
"और मैं हूँ न —
इन दिनों के लिए भी
और इन दिनों के बाद भी।"
उसकी आँखों में नमी सी तैर गई,
पर उस नमी में दर्द नहीं था —
बल्कि एक एहसास था —
कि वो सुनी जा रही है, समझी जा रही है।
"तुम मेरी सारी तकलीफ़ में
इतने पास हो जाते हो,
कि मुझे खुद से भी
डर कम लगने लगता है..."
"और हां,
ये पहली बार है
जब मैंने किसी को
अपने पीरियड्स के दर्द से ज़्यादा
अपने मन की थकान बताई है।"
मैंने मुस्कुरा कर कहा —
"मैं सिर्फ़ तुम्हारा प्रेमी नहीं,
तुम्हारा संगी हूं —
जो तुम्हारे हर रंग, हर रूप में
तुम्हें वैसे ही अपनाएगा
जैसा तुम हो।"
"तुम रौशनी भी हो,
तुम बादल भी हो,
तुम वो नदी हो
जो चुपचाप सब कुछ बहा ले जाती है
पर खुद कभी थमती नहीं।"
उसने सिर मेरे कंधे पर रख दिया,
और वो शाम…
एक नई समझ का वादा बन गई।
“प्यार सिर्फ़ लम्हों का नहीं होता,
वो उन तकलीफ़ों में भी होता है
जिन्हें दुनिया 'औरत की सच्चाई' कहकर अनसुना करती है —
पर एक प्रेमी,
उन्हें अपने इश्क़ की परछाईं बना लेता है।”
Book : नींद मेरी ख़्वाब तेरे written by Rishabh Bhatt