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ले जा तूं अपने बाहों की ठण्डक मुझे गरमाहट की ये धूप ही प्यारी है,
तेरे खातिर मैं अपना सब कुछ बदल लूं मुझे जरूरत ही नहीं तुम्हारी है,
इन अरमानों के बादल को मैंने अकेले ही सजाया है,
तेरे बिना भी हर शाम मैंने तुझको गले लगाया है,
अब इन सांसों की चैन-ओ-सुकून मेरे खुद की कमाई है,
सो गई इन रातों में भी आंखों ने सोकर दिखाई है,
बड़ी बड़ी बातें करती हो आंखों में आंखें डालकर बोलो,
मासूमियत के नकाब को चहेरे से उतार कर बोलो,
तेरी शामों में तारे गिनते उंगलियां मैंने जलाई हैं,
आंखों की प्यास को तेरी तस्वीर पीकर बुझाई है,
लेकिन अब दीवार के इन सुराखों से भी तेरी आंखों का पानी न बहेगा,
एकतरफा तुझसे मेरा राब्ता... एकतरफा ही रहेगा।
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- Rishabh Bhatt