क्या खिल गई इस धूप को बिराना छोड़ दूं?
तकईल की बाहों में सब्र का नज़राना छोड़ दूं,
या इश्क में मारे इस वक्त को आवारा छोड़ दूं,
हमनवा मुझको बता तेरा इरादा लिख के दूं।
गर रात की हाथों में सुबह की कोई तस्वीर मिल जाए,
तनहे मुंतजिर पल की तकदीर ही बदल जाए,
या करवटें तेरी सीने में शमशीर सी चल जाए,
हमनवा मुझको बता तेरा इरादा लिख के दूं।
मुफलिस की जवानी में रोब की रुसवाईयां पकड़ लूं,
बेवा के शबाब सी ख़्वाबों की परछाइयां पकड़ लूं,
या गैरत की जमीं पर अफनाहट की अंगड़ाइयां पकड़ लूं,
हमनवा मुझको बता तेरा इरादा लिख के दूं।
जिस्म की गर्मी में तेरी ठण्डक सुकून आने लगे,
चांद-तारे फीके पड़ जाएं इश्क जगमगाने लगे,
या पिये बिना ही शराबी क़दमें डगमगाने लगें,
हमनवा मुझको बता तेरा इरादा लिख के दूं।
किताब : मेरा पहला जुनूं इश्क़ आखरी
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion