कुदरत का नूर

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"बड़ी फ़ुरसत से एक दिन चांद मुस्कुराया था,

खुदा ने तब तुमको इस जहां के लिए बनाया था,

सूफी की अज़ानों में हर मुराद बस तेरे लिए थी,

जैसे कुदरत में कोई नूर आ थमका हो

रौशन थी तूं और जहां अंधेरे लिए थी............."

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आंखों की मोहताज रंगीलियों की उमंग,

लहलहाती लुपट्टे में मोतियों के संग,

आईने की तस्वीर में दिल के धड़कनों की हरकत,

शहंशाहों का रुतबा ख़ुदा की बरकत,

किसी बच्चे के हाथों में पहली किताब,

खूबसूरती के झूले पर आबरु-ए-शबाब,

नज़्मों की ज़ुबां में गीत गाता मल्लाह,

जन्नत को जाने की इकलौती राह,

तेरे चलने से इस जहां में रुखसतों को आसियान मिले,

तुझे देखकर सूरज ढले और तारों को निकलने का बहाना मिले,

तेरे इशारे से किस्मत छूती ऊंचाईयों की उड़ान,

जैसे मेमने को क्यारी मिले और गरीब को मकान,

तूं ओस की बर्फिली बूंदों में तिनके पर छाई जुनून,

तूं सुबह की ठण्डी हवा और रातों की सुकून,

लोगों की दुआओं में टूटते तारों की पहली मुराद,

तूं ही है इश्क की इल्तिज़ा और मुंतजिर पल की आख़री याद।

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- Rishabh Bhatt

 

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