एक डर हर वक्त सताए जाता है,
तेरी रूह को बाहों में,
ख्वाहिशों को पलकों में छिपता है,
उन टूटते तारों सा मेरी आजमाइशों को
तोड़ तो नहीं दोगे?
तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगे?
ये चाहकर भी भूल नहीं पाता हूं,
खुद की नहीं किताबों की बताता हूं,
कश्तियां दिल की कहीं डूब जाती हैं,
इन ख्वाहिशों के आईने में टूट जाती हैं,
पर तुझपे भरोसा है मेरी जाना!
इन रश्क से बढ़कर कहीं
तुझमें ठहर, तुझमें ठिकाना,
एक चैन भी है जो तेरी सांसों में अटकती है,
सूरज भी छूता है जब तेरे साए को,
आंखों को हर बार खटकती है,
पागल सा कभी–कभी दीवारों से बात करता हूं,
सौग़ात ले तेरे दुआओं की तस्वीर से गुजरता हूं,
फिर भी एक डर हर वक्त सताए जाता है,
तेरी रूह को बाहों में,
ख्वाहिशों को पलकों में छिपता है,
उन टूटते तारों सा मेरी आजमाइशों को
तोड़ तो नहीं दोगे?
तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगे?
किताब : कसमें भी दूं तो क्या तुझे?
यह कविता प्रसिद्ध गीतकार मनोज मुंतशित शुक्ला जी द्वारा लिखी गई नज़्म ‘तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगी?’ से प्रेरित होकर लिखा गया एक प्रयास है। इसका उद्देश्य किसी भी प्रकार का कॉपीराइट उल्लंघन करना नहीं है।
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion