बेचैनी,
आज मुझे इसका मतलब समझ आया😔,
जब तुम्हें गए ढाई साल हो चुके हैं🕰️,
यही जून का ही महीना था☀️,
जब आज ही से पाँच साल पहले,
मैंने तुम्हारे इंतज़ार में लिखा था —✍️
‘बन करके मेरे पुर्सिस में पहनाई,
तू न आई...💭,
होने को ढाई साल आए,
मगर तू न आई।’💔
फिर ख़्वाब मुमकिन हुए🌙,
मेरी भी रातों के दिन हुए🌅,
और फिर दोबारा कब केवल और केवल
चाँद ही दिखने लगा🌕,
इसकी ख़बर ही नहीं लगी।
कई सवाल हैं दिल में💭,
जिनका जवाब सुनने से मैं खुद डरता हूँ😶🌫️।
हाँ, मुझमें इतना साहस है💪
कि मैं तुम्हें देखकर,
चेहरे पर बिना कोई भाव लाए😐,
तुम्हें नज़रअंदाज़ कर सकता हूँ👀🚶♂️।
मगर यक़ीन मानो,
उस दिन मेरा भीगा तकिया ही😭🕯️
तुम्हें मेरी हालत से रूबरू करा सकता है।
बहुत सी किताबों📚 में,
बहुत कहानियों📖 और किस्सों में सुना मैंने,
कि रातों का गुज़रना मुश्किल होता है🌌,
लेकिन मुझे नींद आती है😴,
वो भी गहरी वाली —
तुम्हारे जाने के बाद💔।
तुम्हें चुनना मेरी पसंद थी💞,
इसीलिए तुम्हारे जाने का दोष
मैं किसी और को नहीं दे सकता🤐।
तुम्हारी ख़्वाहिश इस दिल को ही थी❤️,
इसलिए दर्द पर रत्ती भर किसी का हक़ नहीं💧।
मुझे मंज़ूर है —
तुमसे इश्क़ में मिली राहतें🌤️ और आँसू🌧️,
और ये बेचैनी भी... 💔
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion