
Copyright © Rishabh Bhatt
Kasmein Bhi Du To Kya Tujhe?
By Rishabh Bhatt
ISBN : 978-93-340-9458-9
Year : 2024
Paperback ₹249
मैंने कहीं पढ़ा था कि अगर एक पत्थर को समंदर में फेंके तो लहरों से टकरा वो बहता हुआ वापस हमारे पास चला आता है। अगर एक बार फिर उस पत्थर को समंदर में फेंके तो दोबारा वो पत्थर हमारे पास चला आएगा। ऐसा कई बार हो सकता है। लेकिन एक वक्त ऐसा आएगा जब समंदर में पत्थर फेंकने पर वो कभी वापस नहीं आता। हमारी पहुंच से कहीं दूर समंदर की गहराई उसे अपनी गोद में समेट लेती है। उस पल से हमारा उसपे कोई हक नहीं रह जाता। अक्सर हम सबकी ज़िंदगी में भी कुछ शख़्स ऐसे आते हैं जिनसे आज हमारा कोई रिश्ता तो नहीं फिर भी उनके नाम की रौनक से आंखों में पानी भरी चमक और होंठो में मुस्कान हमेशा सज जाती है। ये लोग उसी पत्थर की तरह हैं, जो हमारे इश्क़ की अमानत हैं। छोटे–मोटे झगड़ों से हमारे बीच नाराजगियां चली आती हैं और कोई सोच भी नहीं सकता कि एक दिन वो हमेशा के लिए हमें अकेला छोड़कर चला जाएगा। वो चांद जो हमारे ख़्वाबों का हिस्सा है वहीं रातों की नींद ले कहीं गुम हो जाएगा।
किताब का शीर्षक आपको कुछ जाना पहचाना लग सकता है और लगाना भी चाहिए क्योंकि ये एक गाने से लिया गया है। दिल को छूने वाले आशिक़ी–2 के गाने आज भी कहीं गूंजते हैं तो उनके भाव हर किसी के चेहरे पर दिखने लगते हैं। उसी फ़िल्म के एक गाने (मिलने है मुझसे आई) की चंद लाइनों ने इस किताब के शीर्षक का काम किया है।
जब मैंने इस किताब को लिखना शुरू किया था तभी से एक कहानी मेरे दिल को टटोले हुए थी। शायद इस कहानी ने ही मुझे इस पूरे किताब में अपनी भावनाओं को समेटने का मौका दिया। वैसे तो इस संग्रह में नज़्मों, शायरियों और कविताओं के दर्जनों भाव हैं फिर भी वो कहानी जिसने इस किताब को लिखने की प्रेरणा दी, किताब की कहानी के रूप में अगले पृष्ठ पर प्रस्तुत है। ये कहानी केवल कहानी नहीं बल्कि मेरे और शायद आप में से अधिकतर लोगों की आपबीती है जिसे आप खुद महसूस ही कर सकते हैं....
सालों पहले एक शहजादा तारा आसमान से टूटकर जमीं पर आ गिरा। यहां उसकी मुलाक़ात शहजादी कोहिनूर से हुई। शहजादी कोहिनूर, जिसे कुदरत ने इस जहां में सबसे नायब और बेशकीमती बनाया था। लोगों से ये इश्क़ बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए उन्होंने शहज़ादे तारे को वापस आसमान में भेज दिया और उसे शहजादी कोहिनूर से हमेशा के लिए अलग कर दिया। फिर सालों तक शहजादी के लिए लड़ाइयां चलती रहीं। हवाओं का रुख एक दिन बदला हुआ सा था जब सात समंदर पार से कुछ लोग आएं और शहजादी कोहिनूर को हमेशा के लिए यूरोप लेकर चले गए। वहां उसकी शादी एक अंग्रेज शहजादे से हुई। शहजादी ने इसे अपनी ज़िंदगी माना और आगे बढ़ गई।
दूसरी ओर, आसमान का वो शहजादा तारा शहजादी कोहिनूर के मुल्क वापस आया। यहां उसे सारे मसले मालूम हुएं। फिर भी वो आखरी बार शहजादी से मिलना चाहता था। एक दिन, वो दोनों जब मिलें तो शहजादी ने उसे समझाया कि वो अपने रिश्ते को दिल से स्वीकार चुकी है और आगे बढ़ गई है। उसने शहजादे तारे को भी समझाया कि अतीत को भूल उसे भी अब आगे बढ़ जाना चाहिए। शहजादा तारा भरी आंखों से सिर्फ शहजादी कोहिनूर को देखता रहा।
फिर उस शहजादे तारे का क्या हुआ ये बात मुझे मालूम नहीं। लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि इस दर्द को हर उस इंसान ने करीब से महसूस किया है जिन्होंने अपनी मोहब्बत को किसी और की अमानत बनते देखा है। अक्सर हर इंसान की ज़िंदगी में कोई ऐसा शख़्स होता है जिससे हमारी उम्मीदें जुड़ी तो होती हैं लेकिन उसपे हमारा कोई हक नहीं रह जाता। ये किताब भी उनके लिए जिनकी मोहबत उनके नज़रों के तो सामने है लेकिन उसपे हमारा कोई हक नहीं। पेश है, कसमें भी दूं तो क्या तुझे?"