यादों की खिड़कियों से 🪟 : Season–1
बिछड़ाव की रौशनी 🌙
कितने लोगों के नाम तुमने श्रृंगार किया होगा? 💄
मगर क्या कभी ये भूल सकी हो —
एक मैं ही था, जिसने तुम्हारा श्रृंगार क्या,
तुम्हारा सँवरना भी नहीं देखा था। 🌸
वजह तो एक ही है —
हम एक-दूसरे से प्यार करते हुए भी
दोबारा मिल न सके। 💔
और पहली मुलाक़ात इतनी सादगी भरी थी
कि कुछ नज़र आया ही नहीं
सिवाय इश्क़ के। 💞🌿
सीधी शब्दों में,
हमारा रिश्ता तो शुरू एक मुलाक़ात से हुई थी,
मगर लॉन्ग डिस्टेंस ने हमें
फिर कभी मिलने नहीं दिया। 🌍📱
सालों हमने एक-दूसरे से मिलने के
न जाने कितने सपने देखे, 🌙
कितनी बार ख़्वाबों में एक-दूसरे का हाथ थामा, ✋🤝
लेकिन एक भी दफ़ा तुम्हें हक़ीक़त में नहीं छू सका। 😔
लिखने वाले के मन में क्या रहा होगा? ✍️
कि उसने हमारे बीच ‘मोहब्बत’ तो लिखा,
लेकिन ‘मुलाक़ात’ लिख न सका। 🕊️
और फिर एक वक़्त के बाद
तुम्हें मुझसे वापस छीन भी लिया। 🌧️
तुम्हारा आना
मेरी बिखरी हुई ज़िंदगी को समेटने जैसा था, 💫
और तुम्हारा जाना
दोबारा ज़िंदगी का एक और बिखराव —
जिसे इस बार मुझे खुद बटोरना था। 💔🪞
चार सालों तक
एक सिक्के के जैसे तुम्हें
हर रोज़ दिल के गुल्लक में रखता रहा, 💰❤️
और एक दिन ये गुल्लक यूँ बिखरा
कि एक भी सिक्का मेरा न हुआ। 🕳️😞
वो किसी और की किस्मत में लिख उठी। 💍
मगर मेरे पास भी आज इस बात का जवाब नहीं —
वो जाकर भी आखिर
मेरी ज़िंदगी से क्यों न जा सकी? 🌙💭
बहरहाल, जो भी हुआ,
उसमें थोड़ी सी भी मेरी मर्ज़ी शामिल नहीं थी। 🤲
इंसाफ़ के कटघरे में खड़े होकर ⚖️
कभी कहना हुआ, तो इस बात की गुहार ज़रूर लगाऊँगा —
कि मुझे उससे बस एक बार रूबरू करा दिया जाए, 🕊️
जिसने ‘बिछड़ना’ ही हमारी किस्मत में लिखा। 🕯️
मैं पूरे यक़ीन से कह सकता हूँ,
‘बिछड़ाव’ शब्द लिखने से पहले
उस रचयिता के हाथ
जाड़ों की ठंडी हवाएँ लगने से जैसे काँप जाते हैं — ❄️
वैसे ही काँपे होंगे। 🫶
क्योंकि बिछड़ाव की आंधी ने न केवल हमें,
बल्कि हमारी पूरी दुनिया को तबाह किया — 🌪️💔
वो दुनिया, जिसका हक़ीक़त से तो कोई वास्ता नहीं,
फिर भी ज़िंदगी जैसे उसी पर निर्भर थी। 🌌
मोबाइल के रिंगटोन में
उसकी फीकी और सादी आवाज़ में 📞
न जाने क्यों श्रेया घोषाल और लता मंगेशकर जैसी
मधुर अनुभूति होती है। 🎶💫
तस्वीर में भी उसका होना मुझे यूँ पूरा करता है, 🖼️
जैसे सूरज की रौशनी चाँद को उजले से भर देती है। ☀️🌕
वही रौशनी — जो सूरज से गर्मी लेकर आती है,
चाँद में समाकर शीतलता से भर जाती है। 🌤️
कुछ ऐसे ही मेरा हर आवेश,
उसे महसूस कर
विनम्रता की सीधी लकीर खींच देता है। 🌸🕊️
हर बसंत आज भी मैं फूलों-सा फूटता हूँ, 🌼🌿
हर फाल्गुन जैसे मुझमें उसका रंग चढ़ता है, 🎨💞
और हर पतझड़ —
एक बार फिर आसमां की खुली वादियों में
बिखर-सा जाता हूँ। 🍂💭
🌿 Written by Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion
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Rishabh Bhatt
Poet, Author & Engineer
Words are my way of turning silence into emotions.
Author of 9 published books in Hindi, English & Urdu – from love and heartbreak to history and hope.
My works include Mera Pahla Junu Ishq Aakhri, Unsaid Yet Felt & Sindhpati Dahir 712 AD.
💫 Writing is not just passion, it’s the rhythm of my soul.
📚 Read my stories, and maybe you’ll find a part of yourself in them.
