तो लिख दूँ?
वो गाड़ी जो लाल कुआं जाती है।
निकला हूं जाने किस मक़सद से?
और रहें जाने कहां जा रही हैं?
दिल में कोई बात खटक सी है,
कि जैसे वो हमें अपने नजदीक बुला रही है,
कोई रूबरू हो न हो,
वो इन आँखों को हर ख्वाब में दिख जाती है,
एक गाड़ी में बैठा हूं,
वो जो लाल कुआं जाती है।
तितलियां उड़ती आईं, उस पंखुड़ी पर बैठीं,
जो उसके होंठों से बने थे,
मैंने छुआ तो ये न जान सका,
कि हाथ किस मक्खन में सने थे,
बरेली से रामपुर,
रामपुर से लाल कुआं,
कि लाल कुआं पहुंच जाता,
पहुंच जाता, गर मिलने की उम्मीद होती,
पर... उम्मीद न थी,
तो ठहर, अपने अलमस्तगी की ओर चला,
सफर मंज़िल से पहले ही फिर छोड़ चला,
सुना है, एहसासें ये फितूरी,
पैर उसके भी नचातीं हैं,
कोई गाड़ी जो लाल कुआं जाती है।
🌸 लफ़्ज़ों के पीछे का सफ़र नीचे पढ़ें 👇🏻
🌿 Written by Rishabh Bhatt 🌿
(Author of Mera Pahla Junu Ishq Aakhri, Unsaid Yet Felt, Sindhpati Dahir 712 AD and more books, published worldwide)
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion
लफ़्ज़ों के पीछे का सफ़र
कभी–कभी एक सफ़र सिर्फ़ रास्तों का नहीं होता, वो दिल के भीतर भी चलता रहता है।
उस दिन मैं एक गाड़ी से निकला था—गाड़ी लाल कुआं तक जाती थी। और मेरे कानों में वही लफ़्ज़ गूंजे—
“वो गाड़ी जो लाल कुआं जाती है…”
यानी पहली लाइन उसी वक़्त जन्म ले चुकी थी।
मैं बरेली उतरा, एक दिन वहीं गुज़रा, घूमता रहा। अगले दिन रामपुर में था। बाज़ार की रौनक, खरीदारी की चहल–पहल, सब कुछ नज़र के सामने था, मगर दिल के अंदर एक ख़लिश थी। जैसे कोई अधूरा पन्ना, जिसमें सबसे अहम लफ़्ज़ छूट गए हों।
वो अधूरापन सिर्फ़ इतना था—कि मैं लाल कुआं नहीं जा रहा था।
और लाल कुआं न जाना मतलब, उन आँखों का दीदार न होना। वो आँखें, जिन्हें देख कर मेरे काग़ज़ों पर अल्फ़ाज़ बिखरते हैं।
स्टेशन पर अनाउंसमेंट गूंजता रहा—कई गाड़ियाँ थीं, सब लाल कुआं जाती थीं। पर मैं… नहीं गया। और यही न जा पाना, वही खटक, धीरे–धीरे पूरी एक कविता बन गया।
कल की एक अधूरी लाइन आज पूरी “दास्तान” बनकर सामने आई—
“वो गाड़ी जो लाल कुआं जाती है।”
🌿 Written by Rishabh Bhatt 🌿
About the Author
ऋषभ भट्ट एक ऐसा नाम है जो जज़्बातों को अल्फ़ाज़ में ढालना जानता है।
हिन्दी, अंग्रेज़ी और उर्दू – तीनों ज़ुबानों में लिखते हुए इन्होंने मोहब्बत, तन्हाई, ख्वाब, जज़्बा और इतिहास जैसे रंगों को अपनी किताबों में समेटा है।
अब तक के सफ़र में इन्होंने 9 किताबें दुनिया के सामने पेश की हैं –
“मेरा पहला जुनूँ इश्क़ आख़िरी”, “Unsaid Yet Felt”, “सिंधपति दाहिर 712 AD”, “नींद मेरी ख्वाब तेरे” जैसी किताबें उनके नाम को एक अलग पहचान देती हैं।
पेशा से इंजीनियर, लेकिन रूह से शायर, उनकी किताबें सिर्फ़ अल्फ़ाज़ नहीं बल्कि दिलों की धड़कन हैं।
आज उनकी रचनाएँ Amazon, Flipkart, Google Play Books, Pothi.com और Notion Press जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स पर दुनिया भर के पाठकों तक पहुँच रही हैं।
✨ सफ़र अभी जारी है… और अल्फ़ाज़ की ये कहानी आने वाले वक्त में और भी किताबों का रूप लेगी।