तेरे इश्क में आवारा हुआ हूं,
हां! मैं हारा हुआ हूं।
तुम जीत की रानी,
मैं हार का सौदागर,
अकेलेपन के शहर में
भटकता रहा पूरी उमर,
इस उम्मीद में
कि तुम मिलने आओगी,
उम्र भर के दूरियों को
चंद घड़ियों में मिटाओगी,
बाहों में भरके तुझे
होश में रह सकूं,
मैंने बस इतनी पी थी,
सालो–साल, दरमियां,
हुजूरे–गालिब से इल्तज़ा की थी,
मैं जिस किताब का पन्ना हूं
वो किताब ही बन जाऊं,
तुम सिर्फ मेरी रहो,
मैं तुझको लम्हों लम्हों में पाऊं,
मगर इतनी सी भी इल्तज़ा,
आज तक पूरी हो ना सकी,
तुम्हारे जाने के बाद मेरी मूंदी पलकें
चैन से सो न सकी,
ख़लिस बनके चुभी है,
उन हर शख्स को सजा दी है,
तुम्हारे वास्ते मैंने
कमबख्त वक्त से भी दगा की है,
ठिठकती ठंड में एहसास का
गिरता हुआ पारा हुआ हूं,
तेरे इश्क में आवारा हुआ हूं,
हां! मैं हारा हुआ हूं।
- ऋषभ भट्ट ( क़िताब : मैं उसको ढूढूंगा अब कहां?)