उस शाम जब मैंने अपना सब कुछ लुटाया

 


मोहब्बत के मुखौटे में छिपे,

उन शख़्स को पहचान न पाया,

उस शाम जब मैंने अपना सब कुछ लुटाया। 

 

वो मेंहदी लगाके बनके दुल्हन चली,

मैं बदनाम शायर भटकता रह गया गली-गली,

मेरे ख़्वाबों की इमारत हवाओं में धूल हो गई,

मुझसे इश्क़ करके उनकी दरियादिली बेफिजूल हो गई,

खुदा न खास्ता, वो मुझसे दोबारा मिले,

मैं उनको कुछ कह दूँ,

मेरी हड्डियों में हदसी हुई रातें अब भी हैं,

मैं कैसे इनको सह लूँ?

मारना ही था तो मार देती,

लफ्जों का तीर क्यूँ मारा?

जिन होठों से शौहर बोला था,

उन्ही होठों से कह दी आवारा!

दर्द की दास्तां में तेरी तारीफ भी

गाली है मेरे लिए,

मुस्कुराकर तुम्हीने तो कहा था,

'तू मवाली है मेरे लिए',

अब बचा ही क्या कि तेरा दीदार कर लूँ!

ये हरगिज नहीं हो सकता तुमसे दोबारा प्यार कर लूँ,

दिल के आंखों की पट्टी ने मेरे दिमाग को अंधा बनाया,

उस शाम जब मैंने अपना सब कुछ लुटाया।

 

खैर, तेरी रवानी भी मेरे लिए

गीतों का राग बनकर आई,

सरगम की सीढ़ियों पर तू लुटती रही,

लौटा दी सब कुछ मेरी तनहाई,

मैं इश्क़ से दूर हूं ये सच है,

मगर मुझे वफा से बैर नहीं है,

नफरत मैं तुमसे करता हूं,

इस दुनिया से बैर नहीं है,

सौ बार हड्डियां टूटती मैं एक बार भी न रोता,

अगर गलती मेरी होती और मैं तुमको खोता,

मगर अफसोस मेरी कोशिशें भी तुमको

साजिश नजर आई,

जिस फूल से तुम्हारे बाल सजाएं,

उन्हीं फूलों को मेरे जनाजे में लाई,

आखरी सांस में भी तू मुस्कुराती रही,

जब मैंने दर्द का सैलाब बहाया,

उस शाम जब मैंने अपना सब कुछ लुटाया।


- ऋषभ भट्ट क़िताब : मैं उसको ढूढूंगा अब कहां?)



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