तू खैर, अब आना भी नहीं,
अगर आना तो जाना भी नहीं,
तू खैर, अब आना भी नहीं।
मौसम की रुत आती है
चली जाती है,
रात आती है दिन चली जाती है,
ठंडक में गर्मी नहीं आती,
मौत के बाद जिंदगी नहीं आती,
आना-जाना सबका मंजूर है,
पर तेरा नहीं।
मुलाकातें ख़याली न हों,
हकीकत में कुछ ऐसा हो तो सही,
मोहल्लों, बस्तियों में नहीं,
पूरे जहां में बदनाम है इश्क,
जो करता है उसे मिलती नहीं,
ये कहां गुमनाम है इश्क?
तशरीफ़ अदाओं की लेके,
किसी के बाहों में बैठी है,
हुस्न के मोड़ पर
ये तितली कितनी राहों में बैठी है!
चौतरफा नहीं, ये जहां गोल है,
हमने किताबों में पढ़ा है,
खयालों में उकसाया नहीं,
वक्त ने खुद वक्त को गढ़ा है,
आज शायर बना,
शायरों की बस्ती में अनजान हूं मैं,
किसी से पूछ के पता,
तू मुझको ले जाना भी नहीं,
तू खैर, अब आना भी नहीं,
अगर आना तो जाना भी नहीं,
तू खैर, अब आना भी नहीं।
- ऋषभ भट्ट ( क़िताब : मैं उसको ढूढूंगा अब कहां?)