तलबे–दिल, लाल कुआं दूर है

Rishabh Bhatt

तलबे–दिल लाल कुआं दूर है

By Rishabh Bhatt · Author · Poet

राहे–मुसाफ़िर को तारे देखते हैं, ख़्वाबों में उसको सितारे देखते हैं, बेशक, वो लड़की मशहूर है, तलबे–दिल, लाल कुआं दूर है। उसकी नक्काशी! खुदा ने शौक़ से बनाया हो, जैसे अंगूठी में किसी कोहिनूर को छिपाया हो, दुआएं उससे लेती जन्नत की हूर हैं, तलबे–दिल, लाल कुआं दूर है। अदाएं इंद्रधनुष, निगाहें उसकी तीर हैं, हया में फूल, खफी तो शमशीर है, उससे भी मोहब्बती हाय! उसका गुरूर है, तलबे–दिल, लाल कुआं दूर है। सुनहरे अक्षरों ने लफ्ज़ ढूंढ़ डाला, खुदा जपता है, वो उन मोतियों की माला, तड़पना उसके खातिर उम्र सारी मंजूर है, तलबे–दिल, लाल कुआं दूर है।

🌸 लफ़्ज़ों के पीछे का सफ़र नीचे पढ़ें 👇🏻

🌿 Written by Rishabh Bhatt 🌿 
 (Author of Mera Pahla Junu Ishq Aakhri, Unsaid Yet Felt, Sindhpati Dahir 712 AD and more books, published worldwide) 
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu 
💼 Engineer by profession, Author by passion

लफ़्ज़ों के पीछे का सफ़र

मोहब्बत हमेशा एक अजीब सा राज़ रही है… किसी से प्यार ज़िन्दगी का नक्शा बदल देता है। कहते हैं— प्यार का जादू अक्सर उम्र भर का कैदी बना देता है।

मेरे लिए भी ये एहसास कुछ यूँ आया था जैसे अचानक से दिल में एक अनसुनी धड़कन गूंज उठी हो। मैं एक इम्तिहान देने जा रहा था। सफ़र लंबा था, थकान थी, और ट्रेन की भीड़ में मैं “Where is my train?” ऐप पर नज़रें गड़ाए खड़ा था। स्क्रीन पर मंज़िल का नाम उभर आया—लाल कुआं।

उस वक़्त वो नाम सिर्फ एक जगह नहीं लगा, एक मंज़िल-ए-दिल की तरह सामने खड़ा था। 

दिल बेक़रार था, बेचैनी अपनी हद पार कर रही थी। मैंने ख़ुद को समझाया—

दिल, सब्र रख… लाल कुआं अभी दूर है।

और उसी पल दिल की गहराई से एक आवाज़ उठी—

तलबे–दिल, लाल कुआं दूर है।

यही जुमला मेरी रूह में बस गया। हर शेर उसी से निकला। कभी उसके हुस्न की नक्काशी, कभी निगाहों का तीर, कभी उसके गुरूर की तल्ख़ी—सब उसी मोहब्बत की दास्तान है।

असल में, ये कविता किसी जगह की नहीं, किसी शख़्स की दास्तान है। वो शख़्स, जो हमारी ज़िन्दगी का सबसे निजी हिस्सा भी होता है और सबसे खुला सच भी। जिसे हम छुपाने की कोशिश करते हैं, मगर दुनिया की हर नज़र जान लेती है कि दिल उसी का है।

मोहब्बत दरअसल एक ऐसी मंज़िल है जिसे पाने के लिए सफ़र कितना भी लंबा हो, इंसान चलना छोड़ता नहीं। और “तलबे–दिल, लाल कुआं दूर है”… ये सिर्फ एक जुमला नहीं, बल्कि उस सफ़र का इकरार है, जो हर आशिक़ अपने दिल में करता है।

🌿 Written by Rishabh Bhatt 🌿

Rishabh Bhatt
About the Author

ऋषभ भट्ट एक ऐसा नाम है जो जज़्बातों को अल्फ़ाज़ में ढालना जानता है। हिन्दी, अंग्रेज़ी और उर्दू – तीनों ज़ुबानों में लिखते हुए इन्होंने मोहब्बत, तन्हाई, ख्वाब, जज़्बा और इतिहास जैसे रंगों को अपनी किताबों में समेटा है। अब तक के सफ़र में इन्होंने 9 किताबें दुनिया के सामने पेश की हैं – “मेरा पहला जुनूँ इश्क़ आख़िरी”, “Unsaid Yet Felt”, “सिंधपति दाहिर 712 AD”, “नींद मेरी ख्वाब तेरे” जैसी किताबें उनके नाम को एक अलग पहचान देती हैं। पेशा से इंजीनियर, लेकिन रूह से शायर, उनकी किताबें सिर्फ़ अल्फ़ाज़ नहीं बल्कि दिलों की धड़कन हैं। आज उनकी रचनाएँ Amazon, Flipkart, Google Play Books, Pothi.com और Notion Press जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स पर दुनिया भर के पाठकों तक पहुँच रही हैं। ✨ सफ़र अभी जारी है… और अल्फ़ाज़ की ये कहानी आने वाले वक्त में और भी किताबों का रूप लेगी।

“Thank you for keeping my words alive.” ✨ – RishNova

✨ Read More Beautiful Creations ✨

दिल को छू जाने वाली और भी कविताएँ, नज़्में और मोहब्बत की कहानियाँ यहाँ पढ़ें – हर लिंक एक नई गहराई, एक नई दास्तान खोलेगा।

❤️ Thank you for keeping my words alive.

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