तुम भूल सकोगी क्या मुझको?
मैं तेरी यादों में ज़िंदा हूं।
रातों की सन्नाटो में
ठहरा मैं तनहाई हूं,
रात चांदनी में रूहों की
कोई परछाईं हूं,
रात दिखाती अंधियारी में
आंखों का चलता तारा हूं,
रातों की ठंडक में गिरता
तेरी तपिस का पारा हूं,
आसमान के कालेपन में
उड़ता एक परिंदा हूं,
तुम भूल सकोगी क्या मुझको?
मैं तेरी यादों में ज़िंदा हूं।
दिन–दिन गिरते कैलेंडर में,
तेरी काले बालों का राज था मैं,
ख़ामोश पलों में धक–धक करता,
दिल का इक आवाज़ था मैं,
नज़रों के तीखे काजल में,
होंठों की मीठी लाली था मैं,
तूं फ़ूल थी मेरे बागों की,
कल तक जिसका माली था मैं,
मौसम के ढलने से तूं बदली,
उन बदलाओं की करता निंदा हूं,
तुम भूल सकोगी क्या मुझको?
मैं तेरी यादों में ज़िंदा हूं।
- ऋषभ भट्ट ( क़िताब : मैं उसको ढूढूंगा अब कहां?)