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मेरा कसूर बस इतना था
कि मैंने मशीनों से प्यार किया,
एक सपना हर हद को पार कर मेरे सीने में
इस कदर आ थमका
कि देशभक्ति के इस जूनून ने मुझे लाचार कर दिया,
मेरी सुनता भी कौन ?
मैंने तारों को ही सब कुछ माना था और
जब शरीर को चार डंडे और लोगों की चार
गालियां सुनने को मिलीं
तब पता चला...
अपना एक परिवार भी है..
मेरा पागलपन विज्ञान के हर पन्ने पर एक इतिहास
लिखना चाहता था,
ख्वाबों के चांद को मुठ्ठियों में और मंगल तक
उड़ान चाहता था,
सब कुछ वैसा ही हुआ...
लेकिन इसकी कीमत मेरे परिवार को चुकानी पड़ी,
जेल की हवाओं ने मुझे दोहरा ताक़त दिया
और लोगों ने...
कुछ कह नहीं सकता...
मेरा एक और परिवार था,
जिसने मेरे हर पागलपन में अपना जुनून पूरी
ईमानदारी से दिया,
उनके बिना मैं हर कदम पर अधूरा था...
मगर दुःख है कि
न्यायालय में मैं सही साबित होने के बाद भी
वो सच आज भी अधूरा है...
शायद..
आपके प्रायश्चित मुझे एक नई पहचान दें,
लेकिन..
मैं कभी माफ़ नहीं कर सकता...
- Rishabh Bhatt