विश्वेश्वरैया — भारतीय इंजीनियरिंग के पथप्रदर्शक
— Rishabh Bhatt द्वारा रचित
वो भी तो एक साधारण बच्चा था,
गाँव की पगडंडियों पर चलता,
शायद किसी ने सोचा भी न होगा,
कि एक दिन पूरा देश उसे याद करेगा।
गरीबी उसकी साथी थी,
पर सपनों ने कभी हारना नहीं सीखा।
पुस्तकों से जो दोस्ती की,
वो दोस्ती ही उसकी ताक़त बन गई।
पुणे की गलियों से निकला,
सिविल इंजीनियरिंग का एक चमकता नाम।
हर पत्थर, हर ईंट, हर दीवार में,
उसकी मेहनत की गूंज सुनाई देती थी।
कृष्णराज सागर का पानी कहता है—
“मेरा अस्तित्व उसी की वजह से है।”
हैदराबाद की बाढ़ ठहरकर बोलती है—
“उसने ही मुझे थामा था।”
लोहे के दरवाज़ों की तकनीक में,
उसकी दूरदर्शिता चमकती है।
मैसूर की धरती गवाही देती है—
“उसने मुझे आधुनिक रूप दिया।”
सम्मानों से वो भरा गया,
भारत रत्न और “Sir” की उपाधि पाई।
पर असली पहचान ये थी कि,
उसने अपना जीवन देश को दे दिया।
सदीभर जीकर चला गया वो,
पर हर 15 सितम्बर उसकी धड़कन लौट आती है।
हर अभियंता जब कोई सपना गढ़ता है,
तो उसमें विश्वेश्वरैया की रूह बसती है।
पंक्ति-दर-पंक्ति व्याख्या
1. "वो भी तो एक साधारण बच्चा था..."
यह दर्शाता है कि महान व्यक्तित्व की शुरुआत भी सामान्य परिस्थितियों से होती है।2. "गरीबी उसकी साथी थी, पर सपनों ने हार न मानी"
कठिनाइयों के बावजूद दृढ़ संकल्प और शिक्षा की शक्ति।3. "पुणे की गलियों से निकला, सिविल इंजीनियरिंग का चमकता नाम"
विश्वेश्वरैया की शिक्षा और उनकी इंजीनियरिंग में असाधारण उपलब्धि।4. "कृष्णराज सागर का पानी कहता है..."
उनके द्वारा बनाए गए बांधों और जल संरचनाओं का प्रभाव।5. "लोहे के दरवाज़ों की तकनीक में, उसकी दूरदर्शिता चमकती है"
आधुनिक तकनीकी नवाचार में उनका योगदान।6. "सम्मानों से भरा गया, भारत रत्न और 'Sir' की उपाधि पाई"
उनके जीवन का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान।7. "हर अभियंता जब कोई सपना गढ़ता है, तो उसमें विश्वेश्वरैया की रूह बसती है"
उनकी प्रेरणा और योगदान का आज भी प्रभाव।सर्वेश्वर विश्वेश्वरैया का परिचय और योगदान
सर मू. विश्वेश्वरैया (1861–1962) भारत के महान सिविल इंजीनियर, योजना निर्माता और शिक्षाविद् थे।
उन्होंने भारत में कई महत्वपूर्ण जलाशयों, बांधों और औद्योगिक परियोजनाओं को डिजाइन और कार्यान्वित किया।
उनके योगदान में तकनीकी नवाचार, दूरदर्शिता और समाज कल्याण की भावना झलकती है। उन्हें 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया और उनका जीवन देश के इंजीनियरों के लिए प्रेरणा स्रोत बना।
विश्वेश्वरैया ने दिखाया कि असली महानता पुरस्कारों में नहीं, बल्कि देश और समाज के लिए किए गए योगदान में निहित होती है।
उनके योगदान में तकनीकी नवाचार, दूरदर्शिता और समाज कल्याण की भावना झलकती है। उन्हें 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया और उनका जीवन देश के इंजीनियरों के लिए प्रेरणा स्रोत बना।
विश्वेश्वरैया ने दिखाया कि असली महानता पुरस्कारों में नहीं, बल्कि देश और समाज के लिए किए गए योगदान में निहित होती है।
संपूर्ण सार
यह कविता और लेख सर विश्वेश्वरैया की साधना, ज्ञान और देशभक्ति को उजागर करते हैं।
कविता में उनके संघर्ष, मेहनत और प्रेरणा की झलक है।
लेख में उनके जीवन और योगदान का विवरण है, जिससे स्पष्ट होता है कि
भारतीय इंजीनियरिंग में उनका योगदान अद्वितीय और प्रेरक है।
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"ये आसमान तेरे कदमों में हैं"
यह कविता ऋषभ भट्ट की पुस्तक "ये आसमान तेरे कदमों में हैं" से ली गई है। पुस्तक में प्रेरणा, इतिहास और महान व्यक्तित्वों के अनुभवों को खूबसूरती से शब्दों में पिरोया गया है। यह पुस्तक विश्वभर में उपलब्ध है और हर पाठक के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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