जी० एच० हार्डी के शब्द

Hardy की दृष्टि से रामानुजन को समर्पित कविता - Rishabh Bhatt
जी० एच० हार्डी के शब्द
तुम्हारे आराध्य अनन्त वो,
मेरा मै ही आराध्य हूं,
संबंध न हमारे धर्म का,
पर तर्क संबंध का बाध्य हूं,
खोज मेरी मै तुम्हे मानता हूं,
तुम स्वयं के निर्माण कर्ता हो,
सत्य यह भी मै जानता हूं,
तुम सा न श्रेष्ठ जग में,
हर प्रमेय भी अधूरा है,
अधूरा गणित का हर फलन,
कुछ भी कहां पूरा है ?
पर आज मिथ्या सा लग रहा,
पत्र ये मुझे है छल रहा,
कर रहा आघात हर पल,
जो आज था वो कल रहा।
🌿 Written by Rishabh Bhatt 🌿
(Author of Mera Pahla Junu Ishq Aakhri, Unsaid Yet Felt, Sindhpati Dahir 712 AD and more books, published worldwide)
ऐतिहासिक संदर्भ (Hardy — Ramanujan सम्बन्ध का भाव)
Hardy ने रामानुजन को कैम्ब्रिज बुलाकर उनके साथ सहकार्य किया। वे रामानुजन की प्रतिभा के दृढ़ प्रशंसक थे और आत्मिक तौर पर उनसे प्रभावित भी।

Hardy ने कई बार लिखा और कहा कि रामानुजन जैसा अद्भुत प्रतिभाशाली व्यक्ति दुर्लभ है। उनकी मृत्यु Hardy के लिए एक महान हानि थी।

इस कविता में Hardy की उग्र श्रद्धा और बाद में हुए मानसिक आघात का अर्थ यही है — एक बौद्धिक मित्र-सम्बन्ध का व्यक्तिगत शोक।
पंक्ति-दर-पंक्ति व्याख्या
1. “तुम्हारे आराध्य अनन्त वो,” यह पंक्ति रामानुजन को उस अनंत, दिव्य स्रोत का पक्षी बताती है जिसे Hardy ‘आराध्य’ अर्थात आदर, पूजनीय मानते हैं। यहाँ रामानुजन को केवल व्यक्ति न मानकर संख्या-जगत के पवित्र रूप के समान प्रतिष्ठित किया गया है।
2. “मेरा मैं ही आराध्य हूँ,” Hardy अपनी विनम्रता दर्शाते हैं — वे स्वयं भी उस श्रद्धा/आराधना के पात्र हैं। यह आत्मनिवेदन जैसा है: “मैं भी उनके समक्ष नतमस्तक हूँ।” साथ ही यह संकेत है कि Hardy अपनी बौद्धिक पहचान को भी रामानुजन के सामने कम आंकता है।
3. “संबंध न हमारे धर्म का,” यह रेखांकित करता है कि उनका जुड़ाव किसी पारंपरिक या भावनात्मक धर्म से नहीं, बल्कि किसी अलग आधार पर है। यह धार्मिक न होकर बौद्धिक-तर्कात्मक निहित है।
4. “पर तर्क संबंध का बाध्य हूँ,” Hardy स्वीकृत करते हैं कि उनका बंधन ‘तर्क’ यानी गणित और विचार से है — वे तर्क के कारण बाध्य (आकंठ बंधे) हैं। यह वैज्ञानिक/गणितीय निष्ठा को दर्शाता है।
5. “खोज मेरी मैं तुम्हे मानता हूँ,” Hardy कहते हैं कि जो खोजें वे करते हैं, वे रामानुजन में प्रतिबिंबित होती हैं; Hardy रामानुजन को खोज का स्वयं-स्वरूप मानते हैं — अर्थात् वे खोज के स्रोत हैं।
6. “तुम स्वयं के निर्माण कर्ता हो,” यह पंक्ति रामानुजन की स्व-निर्मित प्रतिभा पर बल देती है — उनकी सोच, सिद्धांत और अंदरूनी प्रेरणा बाह्य परिस्थितियों से स्वतंत्र, मानो स्व-निर्मित हैं।
7. “सत्य यह भी मैं जानता हूँ,” Hardy अपने ज्ञान-विज्ञान की आत्मज्ञाता की तरह कहते हैं कि यह सत्य है — एक मान्यता, जो दार्शनिक और निर्णायक है।
8. “तुम सा न श्रेष्ठ जग में,” यहाँ स्पष्ट प्रशंसा है: दुनिया में उनसे श्रेष्ठ कोई नहीं। यह अकेले काबिलियत का नहीं, बल्कि अनोखे बौद्धिक व्यक्तित्व का सर्वोच्च आकलन है।
9. “हर प्रमेय भी अधूरा है,” यह विचार प्रस्तुत करता है कि बिना रामानुजन-सी अंतर्दृष्टि के किसी प्रमेय का पूरा अर्थ या सुंदरता पूरा नहीं होता — उनकी उपस्थिति गणित को पूर्णता देती है।
10. “अधूरा गणित का हर फलन,” गणितीय 'फलन' (function) भी अधूरा प्रतीत होता है — एक रूपक: सिद्धांत/सूत्र तब तक पूर्ण नहीं जब तक उनका दर्शन/अनुभव उसमें समाहित न हो।
11. “कुछ भी कहां पूरा है ?” यह रेखांकित करता है कि सत्य की खोज ही शाश्वत है; पर वे प्रश्न उठाते हैं — क्या किसी खोज ने पूर्णता पाई? यहाँ हल्की निराशा और विस्मय दोनों हैं।
12. “पर आज मिथ्या सा लग रहा,” अचानक परिवर्तन: आज सब कुछ धोखा सा प्रतीत हो रहा है — जैसा कोई भ्रम/भ्रमित करने वाली सूचना आई हो। यह भाव पहलू में शोक-पूर्वक आशंका का संकेत देता है।
13. “पत्र ये मुझे है छल रहा,” यहाँ 'पत्र' संभवतः वह पत्र/समाचार है जो Hardy ने प्राप्त किया — मृत्यु संबंधी खबर — और वह पत्र अब उन्हें धोखे जैसा लगा रहा है। यह भाव बताता है कि जो तर्क/प्रतीक पहले स्थायी लगे थे, आज वे अस्थिर दिख रहे हैं।
14. “कर रहा आघात हर पल,” रामानुजन के मरण का संदेश हर क्षण अब उन्हें चोट दे रहा है — मनोवैज्ञानिक आघात, संवेदना की तीव्र पीड़ा; गणितिक शून्यपन जैसा अनुभव।
15. “जो आज था वो कल रहा।” यहाँ समय का उलटपन है: आज जो वास्तविक था, वह आने वाले कल में बदल गया। यह मृत्यु या की अनुभूति को दर्शाता है — वर्तमान का भूतकाल बन जाना।
संपूर्ण सार
यह कविता केवल Hardy की श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि गणित और जीवन के अधूरेपन की स्वीकृति भी है। रामानुजन का योगदान इतना गहरा था कि उनके बिना Hardy गणित को अधूरा मानते थे। यह रचना दिखाती है कि समय क्षणभंगुर है, परंतु प्रतिभा और योगदान अमर हैं।
📖 पुस्तक संदर्भ और खरीदें

"ये आसमान तेरे कदमों में हैं"

यह कविता ऋषभ भट्ट यानी मेरे पुस्तक "ये आसमान तेरे कदमों में हैं" से ली गई है। पुस्तक में भावनाओं, प्रेरणा और जीवन के अनमोल अनुभवों को खूबसूरती से शब्दों में पिरोया गया है। यह पुस्तक विश्वभर में उपलब्ध है और हर पाठक के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

मेरे ब्लॉग पर पढ़ें

💫 और भी जीवन गाथा कविताएँ / अन्य प्रेरक लेख

Adhura Samay – Srinivasa Ramanujan

भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जीवन की अनकही गाथा और उनकी अद्भुत प्रतिभा को समर्पित कविता। उनकी असाधारण गणितीय क्षमताओं और संघर्षों का भावपूर्ण चित्रण।

Read the Complete Piece

G.H. Hardy ke Shabad – Ramanujan ke Liye

रामानुजन और उनके मार्गदर्शक जी.एच. हार्डी के दृष्टिकोण से प्रेरित कविताएँ, जो उनके जीवन और गणितीय योगदान की प्रेरक कहानी बयान करती हैं।

Read the Complete Piece

Chhatrapati Shivaji Maharaj

छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता, साहस और राष्ट्रभक्ति पर आधारित प्रेरक कविताएँ और लेख। उनकी रणनीति और नेतृत्व की विशेषताओं का जीवंत चित्रण।

Read the Complete Piece

Veer Bhagat Singh

भारतीय क्रांतिकारी भगत सिंह के साहस और देशभक्ति पर आधारित कविताएँ। उनके अदम्य उत्साह और संघर्ष की कहानी भावपूर्ण रूप में प्रस्तुत।

Read the Complete Piece

Buddham Sarnam Gachchami – Gautam Buddha

भगवान बुद्ध के जीवन और उपदेशों पर आधारित कविताएँ, जो शांति, ज्ञान और आध्यात्मिक मार्गदर्शन की अनुभूति कराती हैं।

Read the Complete Piece

Maharana Pratap

महाराणा प्रताप की वीरता, संघर्ष और स्वतंत्रता के प्रति समर्पण पर आधारित प्रेरक कविताएँ। उनकी अदम्य वीरता का भावपूर्ण चित्रण।

Read the Complete Piece

Nambi – The Rocketri Effect

भारतीय वैज्ञानिक नम्बी नारायणन और उनकी योगदान की प्रेरक कविताएँ। विज्ञान और नवाचार के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान को उजागर करती हैं।

Read the Complete Piece

Radhanath Sikdar – Everest Mapping

राधानाथ सिकदर की खोज और विज्ञान में योगदान पर आधारित कविताएँ। माउंट एवरेस्ट के नक्शे तैयार करने वाले उनके अद्वितीय कार्य को सम्मानित करती हैं।

Read the Complete Piece

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.