कोना कोना ढूंढ लो मेरे दहलीज का, ज़र्रा ज़र्रा सही,
मेरे निगार–ए–जमीं पे उसके सिवाए कोई नहीं,
आदिल तो दिल है मेरी कुर्बतों का,
मेरी हसरतों में उसके सिवाए कोई नहीं,
पाबंद भी उसी से ज़िंदगी आजाद है जिससे,
मेरी निस्बत में असर वो, उसके सिवाए कोई नहीं,
मेरे मय में फना फ़कत उसकी कमी,
नशा मुझको कभी उसके सिवाए कोई नहीं,
परवाज़ उस मुसाफ़िर का मुझे इल्म न था,
मेरे किरदार में कमी उसके सिवाए कोई नहीं,
फ़लक का आफताब भी और चांद भी वो,
मरासिम इश्क़ का मेरे उसके सिवाए कोई नहीं,
सदाएं ढूंढ ले उन लफ्ज़ को है अहमियत जिनकी,
मेरी नज़्मों में उसके सिवाए कोई नहीं,
मेरी जुंबिश–ए–जहां उसके सिवाए कोई नहीं,
मेरे इश्रत की वजह उसके सिवाए कोई नहीं।
किताब : मेरा पहला जुनूं इश्क़ आखरी
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion