हिम्मत है फ़ौलादी तो क्यों रुके हम?
करनी है अपनी एक दिन तो क्यूं झुके हम?
चलना होगा अब तो देखेंगे रोकेगा कौन,
ख़ुद हमारी गरज सुनके आसमां भी होगा मौन,
उम्मीदों का सूरज जब देता खुद पहेरा,
जुल्म की इस दुनिया में हसता ही रहेगा चहेरा,
जादूई इस दुनिया में आंखें क्यूं कर ले नम?
हिम्मत है फ़ौलादी तो क्यों रुके हम?
किस्मतों के हाथों में हैं लिखीं अपनी मुरादें,
मांगके फिर दुनिया से क्यों खुद को गिरा दें!
देने वाला रहता है तारों के संग आसमां में,
मेहनत से चलना है तो फिर चांद ढूंढने शमां में,
कायनात अपनी बनाने में कदमें क्यूं जाए थम?
हिम्मत है फ़ौलादी तो क्यों रुके हम?
गैसों की इस दुनिया में सांसें हम चुनते हैं,
फलकों की छलनी से राहों के पत्थर बुनते हैं,
फुलझड़ियों के दिलासे सुनकर क्यूं पड़ जाएं कमज़ोर?
उम्मीदों की तरंगें जब फैली हैं चारों ओर,
दूरी है बस कुछ ही कदमें क्यूं हो कम?
हिम्मत है फ़ौलादी तो क्यों रुके हम?
करनी है अपनी एक दिन तो क्यूं झुके हम?
हिम्मत है फ़ौलादी तो क्यों रुके हम?
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion