मेरे जवां रात की तूं खोई हुई परछाईं है,
जिसे बाहों में मसरूफ कर
नींद रातों में लाई है,
तेरे बदन की गर्माहट
मेरे बदन को छूके, हिलोरें लेती
लहरों में गिरते बूंद सी
तूं खुद को जैसे मेरे ऊपर बिखेर देती,
ये इश्क़बाजी की रात
इस जवां रात की गवाही है,
जवानी में जवां शाम को डुबाती
जैसे एक राह पे दो जवां राही हैं,
जैसे गुलाब की महक़
तन-बदन में घुलती, इठलाती है,
जुनूने-इश्क यूं ही तेरे छुअन पे
हर पेशानी तुझपे लुटाती है,
तेरी नरम अदा, गरम जिस्म और
लफ्ज़ों में शक्करी मिठास,
बूंद बूंद पी जाती है निग़ाहों की दरिया
आते ही तेरे पास,
नाखूनीं उंगलियों को होंठों से लगाती
तेरी इस अदा को रेशा रेशा झांकता,
मदहोशी की इस रात में
मदहोशी ही पीने के लिए,
दिल हवाओं से भी तेज भागता,
नशा-ए-जिस्म, हर नशे को मार करके,
हमरूह को रूहों में मिला
कम्बख़त जिस्म वाला प्यार करके,
हर रोज़ मसरुफ़ होना चाहती है ये मरहूम समां,
बाहों में बेशर्मी की हदों को पार करती हुई
सारी उम्र जवां...।
किताब : मैं उसको ढूंढूंगा अब कहां?
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion