इन आँखों को नमी की जरूरत है,
मेरे चांद को जमी की जरूरत है,
कल एक सबब बनके आई थी,
मौजों की रवानी से दिल टकराई थी,
मेरी रूहानी इख़लास के कसीदे,
बगैर उसके पल–दो–पल न बीतें,
फिर अचानक से सुनसान सा हुआ मैं,
किन्हीं रुसवाइयों के जहान सा हुआ मैं,
उसने अकेला छोड़ा तो बात समझ आई,
आज हमको हमीं की जरूरत है,
मेरे चांद को जमी की जरूरत है।
आजिज ज़िंदगी पे एहसान कर,
तीरगी का मुझपे यूं न इम्तिहान कर,
जुस्तजू कर तेरी हारा हूं मैं,
ज़दा इस जिस्म का आखरी सहारा हूं मैं,
नबी ओ चाहतों के फकत जागीर दे मुझको,
मैं उसको ढूंढ लूँ जिससे कोई तस्वीर दे मुझको,
जावेदां रिश्त–ए–जां की लिखी कहानी में,
हमेशा इन दर्द के कमी की जरूरत है,
मेरे चांद को जमी की जरूरत है।
किताब : मेरा पहला जुनूं इश्क़ आखरी
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion