कब तलक ये बात होगी किसी के छोड़ जाने की,
हकीमों कोई दवा दो इस आग को बुझाने की,
सुना है दरिया भी सूख जाती हैं कड़ी धूप में,
कोई सूरज तो होगा जहां में इन आसुओं को सुखाने की,
हर बार चुटकुले हों जरूरी नहीं हंसाने के लिए,
बेवजह भी की बात होती है मुस्कुराने की,
अभी तय कर लो वो मेरी तरफ हैं या गैर के,
जो बार बार कोशिश करते हैं तुम्हें रुलाने की,
दखलंदाज़ी हो तो ऐसी, दगा देने वाले ही कहते हैं,
तूने शर्त कर रखी थी पार लगाने की,
यादों में घर कर रखा है भले ही उन्होंने,
मैं भुला दूंगा कोई वजह तो मिले बहाने की,
मोहब्बत करनी है तो ज़िंदगी से कर लो यारों,
ये उम्मीद झूठी है किसी के लौट आने की,
मैं आशिक़ हूं तो हूं, ये बात सच है,
मगर कोई पेशा नहीं है आशिक़ी दिखाने की,
ऐसे भी सख्स हैं दोस्त, जो सुहागरात तो मानते है,
मगर भाग खड़े होते हैं जब बात होती है अपनाने की।
किताब : मेरा पहला जुनूं इश्क़ आख़री
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion