कुदरत-ए-गजब ये काफिला हसरत बड़ी है इश्क़ की,
मैं भी सफ़र में सरफिरा मुझमें नशा-ए-इश्क है,
कातिल जहां के कायदे हासिल हया से दूर चल,
मेरी गली जज़्बात की मुझमें नशा-ए-इश्क है,
साकी शमा ये जश्न की मुझको पिलाती जाम है,
शायद नहीं ये जानती मुझमें नशा-ए-इश्क है,
पीके जहां रातें कहीं हुस्न-ए-हया में डूबती,
वो ही शमा नायाब सी मुझमें नशा-ए-इश्क है,
चलके जहां क़दमें कहीं नजरे कफ़स में डूबती,
ख्वाब-ए-शहर वो रहनुमा मुझमें नशा-ए-इश्क है,
रातें गई, बातें गई, सालें अभी जाने लगी,
तेरी खबर अब तक नहीं, यादें सही मुझमें नशा-ए-इश्क है,
तुमसे गुजारिश आज न मेरी बनो जान-ए-शबा
मैंने खुदा तुममें लिखा मुझमें नशा-ए-इश्क है,
शाम-ओ-सहर के ख़्वाब में लफ़्ज़ें नहीं कुछ बूंद हैं
पीके जहां तुम देखना मुझमें नशा-ए-इश्क है।
किताब : मेरा पहला जुनूं इश्क़ आखरी
🌿 Written by Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion