Kuch Yu Hi Hai Meri Aashiqui...
कुछ यूँ ही है मेरी आशिकी...
जब उसके बाहों को पकड़, आँखों में आँखें डालकर
मोहब्बत बयां करने का समय था,
तो अजनबी बना रहा...
और आज हालात तो यूँ हैं
कि वो कहाँ?
और मैं कहाँ?
एक बेचैनी —
हर वक्त ज़ुबां पर उसके नाम को
अपने साये में समेटना चाहती है,
और एक ज़िक्र बनकर
उसके उल्फ़ाज़ में अपनी मोहब्बत को
देखना चाहती है...
एक पैग़ाम बनकर
रोज़ शाम गलियों से गुजरती
मेरी गुनगुनाहट
तेरे लफ़्ज़ों को
अपनी नज़्मों में चूमना चाहती है,
और तेरे होठों की मुस्कान तस्वीर को
आँखों में भरकर
तुझमें डूबना चाहती है...
ख़्वाबों का एक सिलसिला
जिसे तुमने चलाया,
आज भी एक इम्तिहान बनकर
अपनी मंज़िल की तलाश कर रहा है,
और शब्दों की ये रवानी
तेरे क़दमों तले
अपने जुगनुओं की शाम देखना चाहती है...
दिल की ज़रूरतें
किन्हीं ख़्वाहिश की कश्ती में बैठ
पन्नों की कहानियों में सिमट रही हैं,
और ज़िन्दगी का फैलाव
अपनी उम्र को तेरी रूह में भरकर
तेरे साये में सदियों समेटना चाहती है...
एक अनबन
जो तेरे और मेरे बीच
हमेशा बनी रहती है,
इश्क़ की बाँहों में
उनमें तेरी मासूमियत देखती है,
और घड़ी की सुइयों-सी
हर मोड़ पर तेरी वापसी
शतरंज के इस खेल में
एक वक्त बनकर
तुझे जीतना चाहती है...
शायद...
चाहत के समंदर में डूबती
कुछ यूँ ही है मेरी आशिकी...
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion
This poetry really amazing and heart touching
ReplyDeleteThanks
DeleteYour writing skill is really amazing 👌😍
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