यादों की खिड़कियों से 🪟 : Season–1
आशिक़ी की खामोशी 🖤
उसकी आवाज़ कानों में कुछ ऐसी गूंजती है 🎶,
जैसे अभी कल की ही बात हो उससे बात किए हुए 🕰️।
खैर... बता दूं,
उसे गए तीन साल हो चुके हैं 🗓️।
इन करीब ग्यारह सौ दिनों में
शायद ही उसने मुझे कभी याद किया हो 🤔,
और शायद ही कोई पल हो
जब मैंने उसे न याद किया हो 💭💔।
सोचता हूं —
कभी उससे बात हुई तो यूं पेश आऊंगा,
जैसे हमारी आख़िरी बात कल ही हुई थी 📝,
और कल से आज में कुछ भी नहीं बदला 🔄।
एक बार के लिए वो भी आश्चर्य से, निशब्द होकर 😶
इतना तो जरूर सोचेगी —
कि उसके जाने से
शायद मेरी ज़िन्दगी वहीं रुक गई थी,
जहां वो छोड़ कर गई थी 🕊️।
फिर सोचता हूं —
अगर मुझे उस ऊपर वाले से कोई एक विस मिली 🙏,
तो मैं बस इतना मांगूंगा —
कि मेरी उससे कभी कोई मुलाक़ात न हो ❌👋।
समझ नहीं आता,
मैं उससे प्यार करता हूं ❤️ या नफ़रत 💔?
मेरे अंदर उसके जाने की नाराज़गी 😤 है
या उसके वापस न आने का ग़म 😢?
मेरे इन सवालों का जवाब
शायद मैं अच्छे से जानता हूं...
फिर भी ये दिल हर बार 💓
इन्हीं सवालों का पन्ना मेरे सामने खोल देता है 📖,
और जवाब देने में मैं उलझ जाता हूं 😞।
कुछ लोगों की कहानियां सुनता हूं 🎧,
तो पता चलता है —
ये सिर्फ मेरी नहीं,
हजारों, लाखों लोगों की आपबीती है 🌍।
केवल मैं ही नहीं इस अकेलेपन में...
इस अकेलेपन ने न जाने कितनों का कंधा थाम रखा है 🤝,
न जाने कितनी ठहरी जिंदगियों के धड़कनों को 💓
इस अकेलेपन में सुनाई देने वाली अपनेपन की आवाज़
ने सहेज रखा है —
जो मेरे जैसे हैं 🕯️।
“हर ख़ता की होती है कोई न कोई सज़ा” —
किसी गाने की बड़ी खूबसूरत लाइनें हैं 🎵।
अपने अतीत में झांक मैंने कई कोशिश की 🔍
अपनी उस ख़ता को ढूंढने की,
जिसने उसे मुझसे हमेशा के लिए अलग कर दिया ❌💑।
ढेर सारे वजह दिखे —
इनमें खास बात ये थी कि
एक वक़्त पहले यही वजह
आसानी से सुलझ जाते थे 🧩,
मगर उस दिन नहीं सुलझे,
जिस दिन इन्हें सुलझने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी 🕰️💔।
तभी तो उस गाने की अगली लाइन
इस हकीकत को और भी खूबसूरती से पूरा करती है —
“ग़म लिखे हों किस्मत में,
तो बन ही जाती है कोई वजह” 🌧️.
यानी जिसकी तक़दीर पर ही ग़म का साया चढ़ चुका हो,
उस मोहब्बत का रंग कब तक गुलाबी रहेगा 🌸?
फिर भी... मानना पड़ेगा
आशिक़ी के उस गुरूर को 😌 —
जो आंसुओं में मुस्कुराहट ढूंढ लाती है 😊,
और हर नशे में भी 🍷
सीधा खड़े होने का जज़्बा ढूंढ लेती है 💪।
टूटे हुए दिल ने उम्मीदों को तोड़ इतना तो बता दिया 💔 —
कि कोई नहीं आएगा तुम्हें सहारा देने 🫂,
तुम्हें खुद के पैरों पर ही खड़ा होना होगा 🏃♂️,
हालात चाहे जैसे भी हों 🌪️।
उसका हाथ मेरे हाथों में कुछ ऐसे था 🤲❤️ —
कि सारी दुनिया मेरे विपरीत होती 🌍❌,
तो भी मैं लड़ जाता ⚔️।
मगर जब उसी ने हाथ छोड़ मुझसे मुंह फेर लिया 😔,
तो लड़ाई ही किस बात की बची थी?
मैंने भरी आंखों में घुटने टेक दिए 😢🙏 —
यूँ ही जैसे कभी पाकिस्तानी सैनिकों ने
बांग्लादेश में भारत के सामने घुटने टेके थे 🪖।
ये जानते हुए भी,
कि इस बात का अब कोई मतलब नहीं ❌ —
फिर भी मैं हर रोज़ ✍️
उस इंसान को लिखने बैठ जाता हूं,
जिसने अपने सफर में
मुझे कब का पीछे छोड़ दिया है 🚶♀️💨।
फिर भी मैं उसे लिखता रहता हूं... ✍️
किसी ने मुझसे सवाल किया —
“ऐसा कब तक चलेगा?” 🤷♂️
मैंने जवाब दिया —
“दिल में उसकी यादों के थम जाने तक 💌,
या फिर दिल ही को थम जाने तक 💓...”
🌿 Written by Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion
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Rishabh Bhatt
Poet, Author & Engineer
Words are my way of turning silence into emotions.
Author of 9 published books in Hindi, English & Urdu – from love and heartbreak to history and hope.
My works include Mera Pahla Junu Ishq Aakhri, Unsaid Yet Felt & Sindhpati Dahir 712 AD.
💫 Writing is not just passion, it’s the rhythm of my soul.
📚 Read my stories, and maybe you’ll find a part of yourself in them.
