Tu Mil Hai Mujhse Ek Khwab Me...
मैं लिहाजा जा रहा था होश खोकर,
तू मिल गई शबाब में…
आज भी, माही,
तू मुझसे एक ख्वाब में मिल गई।
इक ज़रिया, जिद-ओ-जहन में
तुझको पाने का था,
सोती शाम में निकाला था,
आजमाइशें तारों-सी बढ़ती गईं
किन्हीं तस्वीरों में,
तनहाई के आलम में भी
वो चाँद हमारा था।
उसके इश्क़ का पानी,
किन्हीं बरसातों की तरह,
मुझे हर शाम भिगाकर चली जाती है,
बाहों में खाली उम्मीद भी नहीं,
लेकिन तसल्ली है कि
वो हर शाम मुस्कुराती है।
अजीब सा है कि
जिन ख्वाहिशों से तुम्हें माँगता था,
उन्हीं ख्वाहिशों ने तुम्हें मुझसे माँग लिया,
भरोसा तो आज खुदा पर भी नहीं रहा,
क्योंकि भरोसे ने ही मेरा सब कुछ छीन लिया।
इक चैन…
जिसे बड़ी मुश्किल से चाँद से चुराया था,
उसने मेरी हर बात का हँसकर टाल दिया—
कि तुमने मेरे इश्क़ को मुझ पर आज़माया था।
हाँ! कसूर मेरा है
कि मैंने हर बुलंदी को तेरे नाम कर दिया,
वादा तो बस एक ही था कि
हर दिन तेरे साथ बीते,
पर तुमने मेरी शामों को भी बदनाम कर दिया।
और आज, इस दर्द में,
तुम एक तनहाई बनकर आई हो,
या उस कसूर की सज़ा देने,
जिसने माना कि तुम खुदा की परछाई हो।
तुम्हारी चुप्पी सब कुछ बयाँ करती है कि
तुम कभी इश्क़ की हो नहीं सकती,
वरना पत्थर के भी दिल पिघल जाते,
तुम तो इस ज़ख्म में भी रो नहीं सकती…
छोड़ो!!
मैं खुश हूँ कि आज भी
मेरा इश्क़ ज़िंदा है,
पाई-पाई के हिसाब में,
आज भी, माही,
तू मुझसे इक ख्वाब में मिल गई…
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion