Kyunki Aaj Meri Shaadi Hai...
"शाम-ओ-सहर के ख़्वाब में मैंने सजाएँ चाँद जो,
उतरा ज़मीन पर, आज है मुझमें धड़क चल पास वो।
मेरी खुदा, सुन लो मुझे, मेरे जेहन में जश्न-सी,
पहली दफ़ा तुम इश्क की दर्द-ए-दुआ फ़रमान हो..."
शायद... आज भी कुछ ऐसे ही एहसास हैं।
और ये लाइनें मैंने, जिसके लिए लिखा था,
वो आज मुझसे सबसे करीब होने जा रही है—
मेरी माही।
वैसे तो ये उसका नाम नहीं है,
लेकिन कुछ ऐसा ही है।
और मैं तो उसे हर मोड़ पर
एक नए नाम के साथ मिलता हूँ।
क्योंकि हर मोड़ पर वो नई मंज़िल होती है।
आज... मेरी शादी होने जा रही है,
उसके साथ जिसने हर परिस्थिति में मुझे
अपने सबसे करीब रखा।
और कलम की भी यही जिद है कि
मैं आज उसके लिए लिखूँ।
दरअसल... इस कहानी की शुरुआत उस पन्ने से हुई,
जहाँ मोहब्बत का कोई शब्द ही नहीं था।
मगर खुशनसीब कि वो थी और मैं था।
इस नई किताब से हम बिल्कुल अन्जान थे,
मगर इश्क़ बहुत कुछ सीखना चाहता था।
और फिर मैंने तो पढ़ना भी शुरू कर दिया
उन किताबी आँखों को...
उन आँखों की मज़ाकत तो यूँ थी
कि उनमें डूब जाओ तो पता ही नहीं चलता
कि आज सूरज भी निकला है।
और शाम होते-होते,
एक तसल्ली-मीरा बनकर
अपने दोहरे इश्क़ को ढूँढती थी।
इन आशिक़ों की गली में
मीरा का तरफ़ा इश्क़
हर वक्त मोहन के दोहरे इश्क़ को बयाँ करती है।
और इश्क़ की मज़ाकत तो देखो!
मेरे सहेरे में उसकी खुशबू है,
राहों में उन आँखों की चमक,
नगाड़ों-सी पायल के घूँघरू हैं,
और ख्वाबों के बाराती...
हवाओं-सी धीरे-धीरे
दुल्हन के घूँघट में
वो मेरी ही ओर आ रही है,
क्योंकि!!
आज मेरी शादी है... ख्वाबों से।
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion