Bagawat-E-Ishq...
एक प्रश्न आज भी अपने पन्नों में हजारों
कहानियों को लिखते जा रही है,
और अब तो हम भी उसका एक हिस्सा बन चुके हैं।
चुनौतियाँ हमारी भी वहीं हैं, और आवाज़ भी
उर्वशी की...
उस रोज़ पूरा देवलोक उर्वशी पर अभियोग बन चुका था,
इसलिए कि उसने प्रेम किया...
युगों-युगों से नाचने वाली एक नर्तकी, जब
अपने मन का नाँच जान लेती है,
तो उसकी मर्यादा की स्याही, मेहंदी की एक
दाग़ बनकर रह जाती है।
और अनारकली के घुंघरू,
जब एक सहजादे के दिल में अपनी
शाख-ए-तमन्नाओं में पनपने लगते हैं,
तो जिल-ए-इलाही की शान-ओ-सौकत
शर्मसार हो जाती है।
आज भी... कुछ नया नहीं है...
बस हम नए हैं, और एक नई शुरुआत है।
पर... उसका भी कोई अंत कहाँ हुआ?
जो आरजू कैदखाने की अंधेरी दीवारों में एक
चाँद जैसी चमक रही थी,
और जिसका ताप बादशाही हतकड़ियाँ एक
पल भी सहन नहीं कर सकीं,
शायद... आने वाला कल हमारे लिए भी ऐसा हो।
लेकिन उर्वशी के वो प्रश्न—
"जिस डमरू को सुनकर ग़ौरी ने खुद को मोड़ लिया,
मुरली की तानों में राधा ने अपना तन-मन छोड़ दिया,
वही लाग मेरे मन में लगी,
तो राजसिंहासन की मर्यादा को मैंने कैसे तोड़ दिया?"
हमेशा अमर रहेगा...
और अब हमें इसके उत्तर की तलाश करनी होगी,
एक अध्याय बनकर...
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion
Nice
ReplyDeleteThank you
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