छत्रपति शिवाजी महाराज

छत्रपति शिवाजी महाराज को समर्पित कविता — Rishabh Bhatt
छत्रपति शिवाजी महाराज — स्वराज्य की ओजस्वी गाथा
— छत्रपति शिवाजी महाराज को समर्पित कविता, लिखित: Rishabh Bhatt
कुछ धर्म रूढ़ियों के कहर से, जब सम्पूर्ण भारत संघर्ष कर रहा था, घुटनों के बल सभ्यता, स्वराष्ट्र के पन्नो में संघर्ष भर रहा था, हाथों की बेड़ियां पंखों को खोल, उड़ानों से दूर सी थी, पर्वत से तिनके-तिनके में, स्वाधीनता की सांसें मजबूर सी थी, तब अंधेरी पर्दे को खोल आंखो में– स्वराज्य की मसालें जलने लगी, गुरिल्ला नीति की छलांग, भारत में आसमान छूने लगी, संघर्ष! संस्कृति की धरोहर बनकर, रग-रग में दौड़ने लगी, समन्दर को मुठ्ठीयों में बांध, स्वराज्य हर बंधन को तोड़ने लगी, सूरज की चमक ने छत्रपति के माथें पर, मानवता का श्रृंगार किया, कौटिल्य की नीति और राणा के प्रताप ने, जब भारत में पुनर्वतार लिया।
🌿 Written by Rishabh Bhatt 🌿
कविता का पंक्ति-दर-पंक्ति व्याख्या
1. "कुछ धर्म रूढ़ियों के कहर से, जब सम्पूर्ण भारत संघर्ष कर रहा था" यह पंक्ति उस युग का संकेत देती है जब सामाजिक जकड़न, आंतरिक विभाजन और बाहरी दबावों ने देश को डगमगा दिया था। कवि यहाँ दिखाते हैं कि इतिहास के उस मोड़ पर समाज अस्थिर था।
2. "घुटनों के बल सभ्यता, स्वराष्ट्र के पन्नो में संघर्ष भर रहा था" भारत की सभ्यता दबे-कुचले हालात में थी; स्वराज्य की चाह किताबों और भूतपूर्व गौरव के पन्नों में छिपी हुई थी—पर जीवित संघर्ष उसकी धड़कन बनी हुई थी।
3. "हाथों की बेड़ियां पंखों को खोल, उड़ानों से दूर सी थी" व्यंग्यात्मक रूप से कहा गया है कि बंधनों ने लोगों की क्षमता और स्वतंत्रता को रोक रखा था—उन्होंने उड़ान भरने की शक्ति खो दी थी।
4. "पर्वत से तिनके-तिनके में, स्वाधीनता की सांसें मजबूर सी थी" पर्वतों के बीच भी आज़ादी की आवाज कहीं-कहीं बिखरी हुई थी; स्वाधीनता की चेतना कमजोर पर जुझारू थी। यह परिस्थिति शिवाजी के उदय के लिए पृष्ठभूमि तैयार करती है।
5. "तब अंधेरी पर्दे को खोल आंखो में– स्वराज्य की मसालें जलने लगी" अचानक जागरण हुआ—छत्रपति के नेतृत्व में स्वराज्य की मशालें जल उठीं; यह पंक्ति जागृति और प्रेरणा का दृश्य प्रस्तुत करती है।
6. "गुरिल्ला नीति की छलांग, भारत में आसमान छूने लगी" शिवाजी की गुरिल्ला (गुहा-आधारित) रणनीतियों ने दुश्मन पर प्रहार कर भारत के असंभव से दिखने वाले स्वप्न को साकार कर दिया। यहाँ गुरिल्ला नीति के प्रभाव और विस्तार का वर्णन है।
7. "संघर्ष! संस्कृति की धरोहर बनकर, रग-रग में दौड़ने लगी" स्वतंत्रता का संघर्ष अब केवल राजनीतिक अभियान नहीं रहा; यह संस्कृति और पहचान का अंग बन गया—हर नस-नस में वह दौड़ने लगा।
8. "समन्दर को मुठ्ठीयों में बांध, स्वराज्य हर बंधन को तोड़ने लगी" शिवाजी ने समुद्री शक्ति, नौसैनिक अभियानों और सामरिक दृढ़ता से सीमाओं को चुनौती दी—यह पंक्ति उनकी समुद्री रणनीति और सम्पूर्ण स्वराज्य की विभूति को दर्शाती है।
9. "सूरज की चमक ने छत्रपति के माथें पर, मानवता का श्रृंगार किया" सूर्य की तरह तेजस्वी रूप में शिवाजी का व्यक्तित्व निखरा—उनका नेतृत्व न केवल सियासी था, बल्कि मानवता और न्याय के आदर्शों से भी रोशन था।
10. "कौटिल्य की नीति और राणा के प्रताप ने, जब भारत में पुनर्वतार लिया" यहाँ कवि यह संकेत देते हैं कि शिवाजी की नीति में राजनैतिक चातुर्य (कौटिल्य) और वीरता (राणा प्रताप) का संगम था; इस मिश्रित दृष्टि ने भारत में नया पुनर्जागरण दिया।
ऐतिहासिक-संदर्भ
छत्रपति शिवाजी महाराज (1630–1680) मराठा साम्राज्य के संस्थापक और भारतीय इतिहास के अत्यंत प्रभावशाली योद्धा-शासक थे। उनकी रणनीति—गुरिल्ला युद्ध, कूटनीति, किले-व्यवस्था और समुद्री शक्ति—ने ब्रह्मांडीय संदर्भ में स्थानीय प्रतिकूलताओं के बावजूद स्वराज्य की मिसाल रची।

शिवाजी ने स्थानीय जनतत्व का उपयोग कर, गढ़बंदी और पठारों का फायदा उठाकर छोटे-छोटे बलों से बड़े आक्रमणों का सामना किया। उनके प्रशासन में लोकहित, न्याय और सैन्य अनुशासन पर बराबर जोर था। उन्होंने सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक आत्मसम्मान को फिर से सुदृढ़ किया।

कवि के शब्दों में जो“कौटिल्य की नीति और राणा के प्रताप” का जिक्र है, वह संकेत करता है कि शिवाजी ने व्यूह और नीति दोनों अपनाईं — नीति में सूझबूझ, और रणभूमि में पराक्रम — जिससे भारतीय क्षेत्र में एक नया पुनरुत्थान संभव हुआ।
संपूर्ण सार
यह कविता छत्रपति शिवाजी महाराज के उदय, उनकी रणनीति और उनके नेतृत्व से प्रेरित समाज-पुनरुत्थान का सजीव चित्रण है। दोनों—रणनीति और साहस—के संगम ने स्वराज्य की भावना को स्थायी रूप दिया। कवि यह याद दिलाता है कि स्वाभिमान और सामरिक बुद्धि मिलकर किसी भी जकड़े हुए समाज को मुक्त कर सकती है।
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