बुद्धम शरणं गच्छामि

Buddham Sharanam Gachhami - आध्यात्मिक कविता
बुद्धम शरणं गच्छामि – चेतना और साधना की कविता
मुस्कुराती हर शाम तू,
ओ चाँदनी— मुझको बता क्यों मौन है?
मेरे हृदय की प्यास में,
सागर बनी इक बूँद सी,
उठती लहर अज्ञान की,
तुम ज्ञान के शाखा अमर,
मेरी उमर तुझमें जिए,
मुझको बता तू कौन है?

कुछ रुनसुनाती रंग में,
बन के तरंग तुम चल रहे,
फिर छल रहा क्यों जग मुझे?
तुम कल रहे, तुम कल रहे।

तुम साधना की शक्ति हो,
सन्दर्भ के तुम भक्तित हो,
तुम ज्ञान के प्रारम्भ हो,
अनन्त के तुम अंत हो।

तुम चेतना के आदि हो,
तुम योग के अनन्त हो,
तेरे चरण में शीष ले,
तुमको नमामि, तुमको नमामि।

तुमको हृदय आशीष दे,
बुद्धम शरणं गच्छामि।
✍️ Written by Rishabh Bhatt ✍️
(आध्यात्मिक प्रेरणा: बुद्ध चेतना और साधना की अनुभूति)
कविता का विवरण
यह कविता एक साधक और उसकी आत्मा के बीच का गहन संवाद है। कवि चाँदनी से प्रश्न करता है कि वह मौन क्यों है — यह मौन अज्ञान, पीड़ा और जीवन की अनिश्चितताओं का प्रतीक है। कवि अपने हृदय की प्यास को सागर में ढूँढता है, पर उसे केवल एक बूँद मिलती है — जो संकेत करती है कि ज्ञान प्राप्त करना कठिन है, परंतु वही एक बूँद संपूर्ण सागर के समान गहराई लिए हुए है।

आगे कवि अनुभव करता है कि अज्ञान की लहरों में भी ज्ञान का अमर शाखा विद्यमान है। यह शाखा उसे बुद्ध की ओर ले जाती है — जहाँ उम्र, जीवन, और चेतना सब शांति पाते हैं। कविता की धारा में एक प्रश्न बार-बार उठता है: “मुझको बता तू कौन है?” यह प्रश्न केवल बुद्ध से नहीं, बल्कि आत्मा से भी है — साधक स्वयं से यह जानना चाहता है कि वह कौन है और उसका मार्ग क्या है।

कविता का मध्य भाग साधना और योग की शक्ति पर केंद्रित है। कवि स्वीकार करता है कि बुद्ध केवल उपदेश नहीं, बल्कि स्वयं साधना की शक्ति, भक्ति का संदर्भ, और ज्ञान का प्रारम्भ हैं। वे अनन्त हैं और अनन्त का अंत भी वही हैं। इसीलिए बुद्ध चेतना और योग के आदि और अंत दोनों हैं।

अंतिम भाग समर्पण और नम्रता का है। कवि शीष झुकाकर कहता है: “तुमको नमामि, तुमको नमामि” और अंततः अपनी वाणी और आत्मा से कहता है: “बुद्धं शरणं गच्छामि”। यह वाक्य संपूर्ण कविता का सार है — अज्ञान, दुख और मोह से मुक्त होने का मार्ग केवल बुद्ध की शरण में है।
बुद्ध और बौद्ध दर्शन पर लेख
गौतम बुद्ध (563 ईसा पूर्व – 483 ईसा पूर्व) ने संसार को करुणा, अहिंसा और ज्ञान का मार्ग दिखाया। उनका संदेश था कि जीवन का सार केवल भोग में नहीं, बल्कि साधना और आत्मज्ञान में है।

“बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि” — यह त्रिशरण मंत्र आज भी साधकों के जीवन में मार्गदर्शक है।

कविता के भाव इन्हीं सिद्धांतों से जुड़े हैं — जब अज्ञान, पीड़ा और मोह छा जाता है, तो बुद्ध का स्मरण साधना का दीपक बन जाता है।
संपूर्ण सार
यह कविता साधना, चेतना और आत्मिक समर्पण की अभिव्यक्ति है। इसमें कवि ने जीवन के प्रश्नों और अज्ञान की लहरों के बीच बुद्ध को ज्ञान, भक्ति और योग का आधार माना है। लेख बौद्ध दर्शन और बुद्ध के सार्वभौमिक संदेश को स्पष्ट करता है। दोनों मिलकर बताते हैं कि सच्चा समाधान केवल बुद्ध की शरण में है।
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यह कविता ऋषभ भट्ट यानी मेरे पुस्तक "ये आसमान तेरे कदमों में हैं" से ली गई है। पुस्तक में भावनाओं, प्रेरणा और जीवन के अनमोल अनुभवों को खूबसूरती से शब्दों में पिरोया गया है। यह पुस्तक विश्वभर में उपलब्ध है और हर पाठक के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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