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मुस्कुराती हर शाम तू, ओ चाँदनी- मुझको बता क्यूँ मौन है?
मेरे हृदय की प्यास में सागर बनी इक बूँद सी,
उठती लहर अज्ञान की तुम ज्ञान के शाखा अमर,
मेरी उमर तुझमे जिए मुझको बता तू कौन है?
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कुछ रुनसुनाती रंग में बन के तरंग तुम चल रहे,
फिर छल रहा क्यूँ जग मुझे तुम कल रहे तुम कल रहे,
तुम साधना की शक्ति हो सन्दर्भ के तुम भक्तित हो,
तुम ज्ञान के प्रारम्भ हो अनन्त के तुम अंत हो,
तुम चेतना के आदि हो तुम योग के अनन्त हो,
तेरे चरण में शीष लेतुमको नमामि तुमको नमामि,
तुमको हृदय आशीष दे बुद्धम शरणं गच्छामि।
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- Rishabh Bhatt