चुनरियां

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तुम्हारी चुनरी जब छत से आकर गिरी थी, 

वो सबसे पहले मुझको ही मिली थी, 

मैंने सोंचा कि चुनरियां 

आजकल की लड़कियों को भाता कहां है ? 

मगर हर बार चुनरी खिसककर,

किसी लड़के के ऊपर आता कहां है..?

मेरे जर्रे जर्रे में तुम समाने लगी, 

लड़का सही है या नहीं ?

तुम भी आजमाने लगी,

जमाने के सामने आकर 

तुम किसी लड़के से कैसे मिलती ? 

बिना चुनरी के वो लड़की 

जो कभी घर से नहीं निकलती, 

हां! तुम्हारी मासूमियत के किस्से सुने थे, 

मगर मैंने उस दिन देखा, 

जब तुमने चुनरी लेने के लिए 

छत से एक रस्सी फेंका,

मैंने बांध, तो वो चुनरी आकर 

फिर से मेरे ऊपर गिर गई,

इश्क बनकर लहलहाती तुम 

जैसे एक पल में मेरी जिंदगी बन गई, 

मैंने बोला, 'आ भी जाओ.. शर्माती क्या हो ?'

और तुम बोली, 'चुप रहो.. 

और वहीं रहो.. जहां हो..'

मैंने चुनरी लौटाया..

मगर तब तक तुम मेरी हो गई,

मन ही मन मुस्कुराता रहा 

'हाय! चुनरी सरकने में क्यूं देरी हो गई !!'

तुम्हारी चुनरी जब छत से आकर गिरी थी, 

वो सबसे पहले मुझको ही मिली थी, 

मैंने सोंचा कि चुनरियां 

आजकल की लड़कियों को भाता कहां है ?

मगर हर बार चुनरी खिसककर,

किसी लड़के के ऊपर आता कहां है..?


- Rishabh Bhatt

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