कई समन्दर को भी मोड़ लातें,
तो मोहब्बत की वो प्यास न होती,
सितारों के जन्नत में भी,
तेरी चांदनी आंखों की एहसास न होती,
न होते एहले दुनिया में–
बरसातों को जमीं से मिलने की ख्वाहिश,
अगर मुकम्मल इन शामों में,
नौ घण्टों की वो रात न होती।
कई बंजारों के ठिकानों में,
मोहब्बत के गुज़रे–
ज़मानों की बात न होती,
कहीं सदियों पुराने तख्त-ओ-ताज पलट जाते,
मोहब्बत की ख्वाहिश -ओ-जस्बात न होती,
न होते पूरे,
तारों के टूटने से उम्मीदों की ख्वाहिश,
अगर शराबी निगाहों में ठहरी,
नौ घण्टों की वो रात न होती।
आंखों की काजल को,
किन्हीं बारिकियों से मुलाक़ात न होती,
किताबों को छोड़..... एहसासों में,
किताबों वाली वो बात न होती,
न होती उंगलियों में,
कलम को पकड़ने की थोड़ी भी ताकत,
अगर ख्वाहिशों की स्याहियों में डूबी,
नौ घण्टों की वो रात न होती।
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion