भली सी एक शक्ल थी, भली सी मेरी सल्तनत,
भला सा उसका इश्क था, भली सी मुझको उसकी लत।
भला–भला सफ़र मेरा, नहीं थी उसको अहमियत,
जरा कभी ठहर गई, तो जाम सी ज़हन में लत,
सरफिरी सी बात में ही, पूछती थी खैरियत,
कभी कभी दीवार पर, वो बन खड़ी थी एक वक्त,
भली सी एक शक्ल थी, भली सी मेरी सल्तनत,
भला सा उसका इश्क था, भली सी मुझको उसकी लत।
वो मोतियों सी अश्क में, ठहर गई तो खैफियत,
डाकिए के लफ्ज में, वो बन चली थी एक खत,
नमी कभी दरार में, होंठ में कभी दरख़्त,
बूंद थी वो इश्क की, कहां सही ? कहां गलत..??
भली सी एक शक्ल थी, भली सी मेरी सल्तनत,
भला सा उसका इश्क था, भली सी मुझको उसकी लत।
किताब : मेरा पहला जुनूं इश्क़ आखरी
यह कविता लोकप्रिय शायर अहमद फ़राज़ जी द्वारा लिखी गई नज़्म ‘भली सी एक शक्ल थी’ से प्रेरित होकर लिखा गया एक प्रयास है। इसका उद्देश्य किसी भी प्रकार का कॉपीराइट उल्लंघन करना नहीं है।
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion