द राॅकेट्री — नंबी नारायण को समर्पित
— Rishabh Bhatt द्वारा रचित
मेरा कसूर बस इतना था,
कि मैंने मशीनों से प्यार किया,
एक सपना हर हद को पार कर मेरे सीने में,
इस कदर आ थमका,
कि देशभक्ति के इस जूनून ने मुझे लाचार कर दिया।
मेरी सुनता भी कौन?
मैंने तारों को ही सब कुछ माना था,
और जब शरीर को चार डंडे और लोगों की चार
गालियां सुनने को मिलीं,
तब पता चला... अपना एक परिवार भी है।
मेरा पागलपन विज्ञान के हर पन्ने पर
एक इतिहास लिखना चाहता था,
ख्वाबों के चाँद को मुठ्ठियों में,
और मंगल तक उड़ान चाहता था।
सब कुछ वैसा ही हुआ...
लेकिन इसकी कीमत मेरे परिवार को चुकानी पड़ी।
जेल की हवाओं ने मुझे दोहरी ताक़त दी,
और लोगों ने... कुछ कह नहीं सकता।
मेरा एक और परिवार था,
जिसने मेरे हर पागलपन में
अपना जुनून पूरी ईमानदारी से दिया,
उनके बिना मैं हर कदम पर अधूरा था।
मगर दुःख है कि न्यायालय में सही साबित होने के बाद भी,
वो सच आज भी अधूरा है।
शायद... आपके प्रायश्चित मुझे एक नई पहचान दें,
लेकिन... मैं कभी माफ़ नहीं कर सकता।
🌿 Written by Rishabh Bhatt 🌿
पंक्ति-दर-पंक्ति व्याख्या
1. "मेरा कसूर बस इतना था, कि मैंने मशीनों से प्यार किया"
यह पंक्ति नंबी नारायण के उस समर्पण को दिखाती है जिसमें उन्होंने अपने जीवन को विज्ञान और शोध को अर्पित कर दिया।
2. "देशभक्ति के इस जूनून ने मुझे लाचार कर दिया"
यहाँ कवि दिखाता है कि देश के लिए उनका जुनून उन्हें ऐसे रास्ते पर ले गया जहाँ उन्हें भारी त्याग करना पड़ा।
3. "जब शरीर को चार डंडे और लोगों की चार गालियां सुनने को मिलीं"
यह पंक्ति उनके साथ हुई अमानवीय पुलिस यातना और समाज की गलतफहमी का चित्रण है।
4. "मेरा पागलपन विज्ञान के हर पन्ने पर एक इतिहास लिखना चाहता था"
विज्ञान के लिए उनका जुनून इतना प्रबल था कि वे अंतरिक्ष तक भारत का नाम ले जाना चाहते थे।
5. "जेल की हवाओं ने मुझे दोहरी ताक़त दी"
कठिनाइयों ने उन्हें और मजबूत बनाया, लेकिन भीतर का दर्द फिर भी शेष रहा।
6. "मगर दुःख है कि न्यायालय में सही साबित होने के बाद भी, वो सच आज भी अधूरा है"
अदालत ने उन्हें निर्दोष घोषित किया, पर उनकी छवि और परिवार की पीड़ा कभी पूरी तरह मिट न सकी।
नंबी नारायण का परिचय और योगदान
डॉ. नंबी नारायण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व वैज्ञानिक हैं।
वे क्रायोजेनिक इंजन प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञ थे और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में उनका योगदान अमूल्य रहा।
1994 में उन्हें झूठे "जासूसी मामले" में फँसा दिया गया और कठोर यातनाएँ दी गईं।
हालाँकि बाद में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें निर्दोष घोषित किया,
लेकिन इस घटना ने उनके जीवन और परिवार को गहरी चोट पहुँचाई।
उनकी अगुवाई में भारत ने स्वदेशी क्रायोजेनिक तकनीक में महत्वपूर्ण प्रगति की,
जो आज हमारे उपग्रह प्रक्षेपण कार्यक्रमों की रीढ़ है।
नंबी नारायण को 2019 में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया।
उनका जीवन संघर्ष यह संदेश देता है कि सत्य और विज्ञान के मार्ग में कठिनाइयाँ चाहे कितनी भी हों,
अंततः धैर्य और ईमानदारी विजय पाती है।
संपूर्ण सार
यह कविता नंबी नारायण की आत्मगाथा को उनके ही शब्दों में चित्रित करती है —
एक ऐसे वैज्ञानिक की कहानी जिसने विज्ञान को पूजा,
देश को सपनों की ऊँचाई देना चाहा,
पर अन्याय और झूठे आरोपों की यातनाएँ सही।
कविता और लेख दोनों मिलकर हमें याद दिलाते हैं
कि सच्चे देशभक्त और वैज्ञानिक इतिहास में अमर रहते हैं,
चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठोर क्यों न हों।