मैं सेक्यूलर नहीं हूं

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'सेक्युलरिज्म' ये शब्द जितना ही स्वतन्त्र लगता है 
उतनी ही अधिक हमारी अस्मिता इससे आहत होती है, 
आपातकाल का वो दौर!!
जब संविधान की धज्जियाँ उड़ाई जा रहीं थीं
और लोगों को बोलने मात्र का भी अधिकार नहीं था,
तब प्रपंचकारी षणयंत्रों ने हमारी मानसिकता से एक छल किया 
और संविधान में सेक्युलर शब्द जोड़ दिया गया... 
इसका वास्तविक अर्थ क्या है ? 
धर्मनिरपेक्ष... 
जो शायद अब तक हमें बताया गया है!
मगर वास्तविकता इससे भिन्न है
एक विदेशी शब्द जो पंथ निरपेक्षता को प्रदर्शित करता है,
उसके अर्थ को बदल कर हमें ग्रहण करने को 
बाध्य किया गया
और हमारी अस्मिता इतनी शिथिल पड़ जाती है 
कि हम उसे स्वीकार भी कर लेते हैं...
वास्तव में पंथ और धर्म कैसे भिन्न हैं ?
इसे समझना होगा... 
पंथ! जो केवल मात्र एक पूजा पद्धति है और धर्म इससे भिन्न एक जीवनशैली है। 
पंथ! जिसका उद्‌भव चर्च की घंटियों और 
अजानों से होता है 
इससे भिन्न धर्म का अस्तित्व मनु स्मृति के दस तत्वों में है। 
ये दुर्भाग्यपूर्ण है! 
कि सेक्युलिरिजम का अर्थ हमें वो समझा रहें हैं
जिन्होंने धर्म विद्रोह का हवाला देकर जीसस को मृत्यु शैय्या पर सुला दिया...
और हम स्वयं कोे पद्‌दलित मान भूल बैठें हैं 
कि पारम्परिक कर्मकाण्ड के विरोध में भी हम
बुद्ध को अवतार मानते हैं,
बिना क्रॉस, टोपी और पगड़ी को आधार मानते हुए 
विष्णु पुराण का वो सत्य जो सागर के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में स्थित भू भाग को 
भारतवर्ष की संज्ञा देता है 
और हमें भारतीयता प्रदान करता है... 
स्वामी विवेकानन्द का सिकागो संबोधन 
सनातन को किसी विशेष वर्ग का नहीं अपितु 
मानवता का धर्म स्वीकार करता है...
'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना और 
'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया' की 
प्रार्थना भी हिन्दुत्व के ही आत्मज हैं 
जो हमें साक्ष्य प्रदान करते हैं
कि सनातन को किसी भी सेक्युलरिज्म की 
आवश्यका नहीं है...
और शायद इसीलिए मैं सेक्युलर नहीं हूं।
- Rishabh Bhatt

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