विनायक मेरे
आस्था का अद्वितीय आलाप • शास्त्रीय और शाश्वत प्रस्तुति
हो आए तुम्हीं लाज रखने भगत की,
हृदय ऊषा से हैं डगमगाएं मेरे,
एक आस सबन की मुझपे लगी,
भय मुझमें कदम गिर न जाएं मेरे,
विघ्नों के हारता, ‘मेरी सुनो’,
मैं चल दूं, डगर तुम ही चुनो,
कृपा दो भर भर, बाकी सब जो लायक मेरे,
मेरे सबसे बड़े धन तुम ही विनायक मेरे।
कृपा दो भर भर, बाकी सब जो लायक मेरे,
मेरे सबसे बड़े धन तुम ही विनायक मेरे।
हे लगा दो प्रभु छवि पलकों पे,
हर पल तुम्हें खुद में पाया करूं,
मेरे सुख में मोदक कम ही रखो,
कि मृदुता हृदय की चढ़ाया करूं,
रैन अखियां लगीं चैन मुझको नहीं,
मन भटकता रहा शयन मेरा नहीं,
दुविधा की मेरे, बनो विघ्नहर्ता सहायक मेरे,
मेरे सबसे बड़े धन तुम ही विनायक मेरे।
सद्भावना का विस्तार दो मनुज को,
आत्म ही निरंतर तुम्हें पूजा करे,
कर दिया जब मनन चित का तुमको,
तो अहंकार से भी भला क्यूँ डरे?
श्वास के संकल्प तुम ही सारे हुए,
हम तुम्हारे, प्रभु तुम हमारे हुए,
बने सबसे बड़े प्रेरणा, नायक मेरे,
मेरे सबसे बड़े धन तुम ही विनायक मेरे।
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