****
माँ...,
कभी माँ की आंखों में आंखें डालकर बोला है आपने,
"कि माँ आप दुनिया की सबसे सुन्दर स्त्री हो !"
शायद नहीं...
उन हाथों को जो अक्सर रोटियां बनाते समय लाल हो जाती हैं,
शायद ही किसी के होंठों तक पहुंच पाई हों..!!
कितना बदल चुके हैं हम यार...
कि आज मूर्तियों की भी पूजा करते हैं,
तो बदले में एक फरमाइश तैयार होती है..!!
श्रद्धा, प्यार, भक्ति, समर्पण जैसी हर शब्दों की परिभाषाएं बदल चुकी हैं,
लेकिन माँ का वो प्यार, जो हमें नौ महीनों तक अपने सीने से लगाए रखता है,
आज भी वैसा ही है..!!
सौभाग्य है हमारे अस्तित्व का कि हमारी संस्कृति स्वयं देवी आदिशक्ति हैं..!!
फिर भी एक कमी है,
कि हम राम की शक्तिपूजा को भूल चुके हैं, और
संर्घष को जीतना चाहते हैं..!!
आज, घंटियों की आवाज से पहले एक बार मां के उस आवाज को सुनना होगा,
जो शाप बनकर भी कृष्ण के लिए अमृत के समान थी..!!
और यही अमृत मंत्र है...
माँ के आंचल में इस प्रकृति ने उत्पत्ति के उस राज को छुपाया है,
जो हर शुरुआत के लिए जरूरी है, और
जिज्ञासा का अंतिम पड़ाव स्वयं माँ देवी आदिशक्ति हैं..!!
तो, एक बार खुद को बदलकर चलिए,
क्योंकि मंदिरों को भी एक सच्चे भक्त का इंतजार है..!!
- Rishabh Bhatt