तेज धर्म मूर्ति के आभा अर्क समान,
मर्यादित पुरुषार्थ से है त्रिलोक ये प्रकाशमान,
न समान पंचतत्व में कोई रघुवर सा नाम,
सृष्टि के सृजनकर्ता, जय रघुनंदन श्री राम।
ये मन भर हर्ष से खिले रजनी में आश मिले,
जीवन को मूल मिले जो कौशल्यानंदन के चरणों की धूल मिले,
शरणों में ये तन करता रहे वन्दन,
जय रघुपति राघव दशरथनन्दन।
हैं गुण ज्ञान कोश मन भावन पावन चरित्र,
धर्म,कर्म के स्तम्भ करें गुणगान गंगा पवित्र,
गुणगान करें सुर,नर, मुनि, जन
भजता रहे ये मन जय रघुकुल भूषण राजीव नयन।
चला जा रहा सुन जिस गाथा को अविरल,
अज्ञेय बसा क्या उसमें जो नव्य लगे हर पल,
आदर्श भरे जीवन में दे जीवन को संबल,
निर्मल करता तन,मन जय सियापति रघुनंदन।
भावार्थ
पहला भाग
"तेज धर्म मूर्ति के आभा अर्क समान…"
यहाँ श्रीराम के तेज और उनकी धर्ममूर्ति स्वरूप का वर्णन है।
उनकी आभा सूर्य के समान है और उनके मर्यादित पुरुषार्थ से पूरा त्रिलोक आलोकित है।
पंचतत्वों में किसी का नाम भी श्रीराम जैसा पवित्र और महान नहीं है।
वे सृष्टि के संतुलन और धर्म के सृजनकर्ता हैं।
👉 भावार्थ: श्रीराम केवल एक राजा नहीं, बल्कि धर्म और मर्यादा की ज्योति हैं, जिनकी शक्ति से त्रिलोक प्रकाशित है।
दूसरा भाग
"ये मन भर हर्ष से खिले…"
जब मन राम की भक्ति में डूबता है, तो रात में भी उम्मीद और आशा का प्रकाश खिल उठता है।
जीवन को असली मूल तभी मिलता है जब उसे कौशल्या नंदन (श्रीराम) के चरणों की धूल प्राप्त होती है।
कवि कहता है कि यह तन निरंतर उन्हीं की शरण में वंदन करता रहे।
👉 भावार्थ: श्रीराम के चरण ही जीवन की जड़ हैं, उनसे जुड़ने पर ही मनुष्य को शांति और आश्रय मिलता है।
तीसरा भाग
"हैं गुण ज्ञान कोश…"
श्रीराम गुण और ज्ञान के खजाने हैं, जिनका चरित्र पवित्र और मनभावन है।
वे धर्म और कर्म के स्तंभ हैं।
गंगा जैसी पवित्र धारा भी उनके गुणों का गुणगान करती है।
देवता, मनुष्य, ऋषि-मुनि, सभी उनके नाम का स्मरण करते हैं।
👉 भावार्थ: श्रीराम केवल आदर्श राजा नहीं, बल्कि धर्म के स्तंभ हैं, जिनके गुणों का गान स्वयं देवता और प्रकृति तक करती है।
चौथा भाग
"चला जा रहा सुन जिस गाथा को अविरल…"
रामकथा अनादि काल से चली आ रही है, फिर भी हर बार नई लगती है।
उसमें अज्ञेय (जो समझ से परे है) भी बसा है और वही हर पल नया अनुभव देता है।
श्रीराम के आदर्शों से भरा जीवन इंसान को संबल देता है, तन-मन को निर्मल करता है।
👉 भावार्थ: रामकथा कभी पुरानी नहीं होती, क्योंकि उसमें जीवन का सत्य और संबल छुपा है। श्रीराम का स्मरण आत्मा को शुद्ध करता है और जीवन को दिशा देता है।
संपूर्ण भावार्थ
यह रचना कहती है कि—
- श्रीराम की मर्यादा और धर्म का तेज त्रिलोक को आलोकित करता है।
- उनके चरणों की धूल ही जीवन को सार्थक और पूर्ण बनाती है।
- उनका चरित्र धर्म, कर्म और ज्ञान का स्तंभ है, जिसका गुणगान देवता से लेकर मनुष्य तक करते हैं।
- और उनकी कथा अनंत है—हर बार नई लगती है, हर बार जीवन को नया संबल देती है।
👉 निष्कर्ष:
श्रीराम केवल भूतकाल के नायक नहीं हैं, बल्कि आज भी वे धर्म, मर्यादा और आदर्श जीवन के प्रकाश हैं।
उनका स्मरण मनुष्य को निर्मल, समर्थ और संतुलित बनाता है।
🌸 Written by Rishabh Bhatt 🌸
(Author of Mera Pahla Junu Ishq Aakhri, Unsaid Yet Felt, Sindhpati Dahir 712 AD and more books, published worldwide)
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion
📚 Read more works at: Rishabh Bhatt Official Blog
Very very nice
ReplyDeleteThank you
DeleteGood poem 👌👌
ReplyDeleteThank you
Deletevery very nice poetry 😗
ReplyDeleteJai Shree Ram🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteRam ram jai shree ram
ReplyDeleteVery nice poetry
ReplyDeleteBeautiful poem
ReplyDeleteJhakas
ReplyDeleteBahut sundar
ReplyDeleteJai Shree Ram
ReplyDeleteJai jai shree ram
ReplyDeleteBahut mast
ReplyDelete