बिन बातों के बातें करना मुश्किल सा कुछ कह पाना,
फिर कहकर भी सब कुछ रह जाना,
फितरत मेरी है मस्ताना... फितरत मेरी जां मस्ताना।
पल दो पल में एक बार सही पर खुशियों में बह जाना,
पी-पी कर आंखों को होठों से मुस्काना,
फितरत मेरी है मस्ताना... फितरत मेरी जां मस्ताना।
तारों के शहरों में चलकर अपनी बस्ती में खो जाना,
सांसो की बेचैनी तेरी गलियों में बहलाना,
फितरत मेरी है मस्ताना... फितरत मेरी जां मस्ताना।
कुछ लम्हों में बह कर तुमसे सालों न मिल पाना,
फिर भरकर खूब फिजाओं में तुम तक ख्वाबों को पहुंचाना,
फितरत मेरी है मस्ताना... फितरत मेरी जां मस्ताना।
साये को बाहों में भरकर यादों में रम जाना,
तेरी ही परछाई में अपनी कदमों को टहलना,
फितरत मेरी है मस्ताना... फितरत मेरी जां मस्ताना।
ख्यालों की खामोशी पल-पल तेरी लफ़्जों में गाना,
यादों की तनहाई तुझमें नींदों को नहलाना,
फितरत मेरी है मस्ताना... फितरत मेरी जां मस्ताना।
किताब : मैं उसको ढूंढूंगा अब कहां?
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion