Tu Junu Ke Aag Si...
जाम सी तू मरहमी है, बेअदब दिल में नशा है,
रानाईयों में इस खटक का तंज तूने ही कसा है,
किस्मतों से मौत आके छू लकीरें हिल गई,
लत नशीली क्या करेगी? लुप्त तेरी मुझको मिल गई,
जाम होंठों से लगा मैं, स्वाद तेरा पा रहा हूँ,
खा अफ़ीमों को नहीं, इश्क़ में मैं लड़खड़ा रहा हूँ,
बनके तूफां, आंधियों से हर उलझता आ रहा हूँ,
तूं जुनूं के आग सी है, मोम सा मैं पिघलता जा रहा हूँ।
इक झलक पर मर मिटा हूँ, दीवानगी है या क्या है?
तेरे बागों में खड़ा फूल ये बिल्कुल नया है,
तेरी रंगों को पकड़ धड़कनों की सांस भर दूं,
तेरे खातिर ये जहां एक पल में राख कर दूं,
दे इजाज़त सुर को मेरी, ताल तेरे गा रहा हूँ ,
मैं चलाकर गोलियों को, खुशबुएं महका रहा हूँ,
बनके तूफां, आंधियों से हर उलझता आ रहा हूँ,
तूं जुनूं के आग सी है, मोम सा मैं पिघलता जा रहा हूँ।
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion