मुहाजिर इश्क़ में, दिल चाहता है
तुझे ढूंढने के बहाने,
मुठ्ठियों में भर लूं तो भी,
जिस्म कोई पाबंदीयां न माने।
नज़र के सामने ला तुझको,
हर बंदिशें पार करना चाहूं,
क्यूँ आज मैं मोहब्बत,
फिर एक बार करना चाहूं?
कोई खुला पन्ना,
दिल के अंधेरे में छोड़ आया था तूं,
जो गहरी आँखों ने पढ़ ली,
खामोशियों में छिपाया था तूं।
जली रात की अकेली राहें,
आँखों में जैसे तारे देखें,
ढूंढ लाई है मेरी ख़्वाब,
तुझको संदूकों में सितारे भरके।
तूं ख्वाहिशों की कोई परी है,
जिससे मिला दिल ख्वाब में,
तेरा नशा मुझपे चढ़ा,
आँखों की कमबख्त रात में।
बाहें मिलाकर बांट ले
मेरी बचीं जो धड़कनें,
ज़िन्दगी को करके अदा,
मैं तेरी साँसों में समाया करूं।
तेरे इश्क़ ने मुझे क्या से क्या कर दिया,
अब ये आलम है कि,
तुम्हारी आँखों के खातिर
चाँद को भी इनकार करना चाहूं।
नज़र के सामने ला तुझको,
हर बंदिशें पार करना चाहूं,
क्यूँ आज मैं मोहब्बत,
फिर एक बार करना चाहूं?
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion