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खटकती रातों से गुजरना दिल के लिए मुश्किल है
जब सफ़र भी तू और मंज़िल है...
नींद में निकली दुआ के आयत सी इक लम्हा मेरे पास है
जैसे चांदनी रात में कोई चांद से प्यार करें
खुशनुमा दिल की महज़ तू एहसास है,
हल्की हल्की बारिश में चश्मे के पीछे छिपीं आंखें
तराने की गीत बन वाइलिन पे उतर जाती है
जब सुर्ख होंठों पर मानसून की पहली महक़
गुलाब के चादर सी लम्हे बिछाती है,
गुमराह दिल में एक आवाज जोरों शोरों से कोहराम मचाए हुए है
कागज़ में लिपटकर ठण्डी हवाओं की लहक़
जैसे धुंधली छांव में महबूब को छिपाए हुए है,
मेरी जान ! ये सुरूर सिर्फ मेरा है या तुम भी इसमें शामिल हो
जितना पागल मैं हूं क्या तुम भी उतनी ही पागल हो,
झरने सी बह रही सरगम की सदाओं में
धीरे-धीरे चहरे से अपनी जुल्फ़ों को हटाओ
मस्तानी आंखों में ये लम्हा क़ैद हो जाने दो
पिघलते मोम सी मेरे दिल में उतर जाओ
बड़ी तशरीफ़ रख के मोहब्बत ने ये आशिक़ी की जुनून पाई है
हुनर की रात बाकी है ख़यालो में दीदार की कलियां निखर आईं हैं
- Rishabh Bhatt