वीर भगत सिंह

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मेरे सांसों की स्याही जीवन के अंतिम पन्ने पर है,

प्रस्ताव साथ में....लिखने को तो शेष उमर है,

एक पत्र में क्षमा लिखूं सरकार दयालु पन्ने भर देगी,

कारा की ये रात अंधेरी तारों से रौशन कर देगी,

पर.... कहां अंधेरा ? संग मेरे ज्वाला सी चिंगारी है,

ये सांस कहां मरती है ? ये तो युग अवतारी है,

फिर भी.... एक पत्र लिख ही देता हूं,

शायद आज समय.... कुछ कह जाने की है,

जीवन के अंतिम पन्ने पर जीवन को दोहराने की है,

बस....एक विनय अधिकारी से है न सांस दया की प्यासी है,

मैं देश प्रेम में न्योछावर हूं पर मुझ पर दोषी फांसी है,

है चाह मेरी....बन्दूकों की गोली मेरा शीना पार करे,

मैं बलिदानी रण को अर्पित ये धरती मेरा आधार बने।

- Rishabh Bhatt

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