शहर की वादियों से,
बड़ी मुश्किल से निकल पाया हूं,
चैन की सांस लेने,
मैं एक गांव में आया हूं।
जैसे आंखों को तारें चुभने लगे हैं,
चकाचौंध से आसमान धुंधले पड़े हैं,
उन बनावटी रौशनी से कहीं दूर,
चांद से निगाहें मिलाया हूं,
चैन की सांस लेने,
मैं एक गांव में आया हूं।
सड़कों पे गाड़ियों की मारा–मारी,
पक्षियों से सूनी हर एक डारी,
उन हैरतंगेज आवाज़ों से दूर,
चिड़ियों की चहचहाहट सुन पाया हूं,
चैन की सांस लेने,
मैं एक गांव में आया हूं।
रंग–बिरंगी दीवारें,
पर अफनाहट की एहसासे,
खेतों खलिहानों में लेटी,
मन शांति भरी कुछ सांसें,
हां! बड़े दिनों बाद,
खुले आसमान के नीचे सो पाया हूं,
चैन की सांस लेने,
मैं एक गांव में आया हूं।
शहर की वादियों से,
बड़ी मुश्किल से निकल पाया हूं,
चैन की सांस लेने,
मैं एक गांव में आया हूं।
- ऋषभ भट्ट ( क़िताब : ये आसमां तेरे क़दमों में है)