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कण कण हर क्षण पहेलीयों सा सजीला,
है अपरिचित रंग ये है राह ये रंगीला,
चल मगर कर याद विश्व के क्रंदन भरे स्वर,
कम्पन करे न बाह तेरी कम्पन करे ये डर,
ठहरा हुआ न सोंचे तू वायु के समान है,
एक अपरिचित राह ये पंथ तू अंजान है।
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मदिरा भरी बूंदें बरसती मोह लेती मन को,
रश्मियां झूले झुलातीं बांध लेती तन को,
शक्तियां मन की तेरी बस ध्यान कर ले,
डग मगाते पग ये चट्टान कर ले,
बिखरी हुई राहें भले एकाग्रता का जहान ये,
एक अपरिचित राह ये पंथ तू अंजान है।
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पुष्पें बिछि राहें कहीं ज्वाला सी जलन है,
जंजीरों सी जकड़ी कहीं हिम की गलन है,
पर चल निरंतर पंथ तू सत्कर्मों को याद कर,
बाधक बनी उन धर्मों को त्याग कर,
बढ़ती हुई दूरियां नजदीकीयों की पहचान है,
एक अपरिचित राह ये पंथ तू अंजान है।
- Rishabh Bhatt
, बहुत सुन्दर काव्य 👌👌👌👌
ReplyDeleteNice poetry
ReplyDeletebahut khoob
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