नौ घण्टों की वो रात न होती....

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कई समन्दर को भी मोड़ लातें
तो मोहब्बत की वो प्यास न होती,
सितारों के जन्नत में भी
तेरी चांदनी आंखों की एहसास न होती,  
न होते एहले दुनिया में
बरसातों को जमीं से मिलने की ख्वाहिश,
अगर मुकम्मल इन शामों में
नौ घण्टों की वो रात न होती....।
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कई बंजारों के ठिकानों में
मोहब्बत के गुज़रे
ज़मानों की बात न होती,
कहीं सदियों पुराने तख्त-ओ-ताज
पलट जाते...
मोहब्बत की ख्वाहिश -ओ-जस्बात न होती,
न होते पूरे !
तारों के टूटने से उम्मीदों की ख्वाहिश,
अगर शराबी निगाहों में नौ घण्टों की
वो खूबसूरत रात न होती....।
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आंखों की काजल को
किन्हीं बारिकियों से मुलाक़ात न होती,
किताबों को छोड़..... एहसासों में
किताबों वाली वो बात न होती,
न होती उंगलियों में
कलम को पकड़ने की थोड़ी भी ताकत,
अगर ख्वाहिशों की स्याहियों में डूबी
नौ घण्टों की वो रात न होती....।


- S. Rishabh Bhatt

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