डरना पल दो पल का काम है,
फिर तो आगे बढ़ना ही होगा।
झूमती दिशाओं में
क्षितिज की सवारी करनी पड़ेगी,
उम्मीद की सीढ़ियों पर
पांव उठाकर चढ़नी पड़ेगी,
मुस्कुराते मन की मुस्कुराकर सुनो,
कठिनाइयों के राह पर कहानी को बुनों,
सालो–साल हवाओं में जिंदा रखे
मरने के बाद भी,
राह ऐसी, राह को तुम मुस्कुराकर चुनो,
गर्मी ठंडी मौसम का काम,
तुमको एक जैसा ही रहना होगा,
डरना पल दो पल का काम है,
फिर तो आगे बढ़ना ही होगा।
हसरते गुमनामी की बड़ी हैं?
या तुम्हारा शोर जादा,
गुत्थियां लोगो की बड़ी हैं ?
या तुम्हारा खुद से किया वादा,
मिलाने हों हाथ गले मिलो,
मगर डग डग पर पांव सम्हल कर चलो,
चिताओं को भस्म से कर दो
रौशन जहां की जगनुओं को,
जब तक जहां में रहो, उड़ते रहो,
फिर सितारों के संग संग जलो,
क्या भरोसा इस जिंदगी का
आज जी लो, कल मरना ही होगा,
डरना पल दो पल का काम है,
फिर तो आगे बढ़ना ही होगा।
अस्तित्व कोई बात है?
या कि अमर कोई राज है?
जीत का रंग उसको चढ़ा
जिसको मिला यह ताज है,
किसने लिखी, किसकी कहानी?
किसने सुनी, किसकी जुबानी?
बात सबकी धुल गई,
बारिशें जब जब हुईं,
अश्रु बनकर बह गए,
मौन उर ने जो कष्ट मानी,
बात सीधी कहने के लिए
टेढ़ेपन से गुजरना ही होगा,
डरना पल दो पल का काम है,
फिर तो आगे बढ़ना ही होगा।
- ऋषभ भट्ट ( क़िताब : ये आसमां तेरे क़दमों में है)