भटकती रह गई हर आस मेरी,
उसे दुआओं से ला न सकी,
दिल के खाली फ्रेम में,
किसी और की तस्वीर आ न सकी,
मुझसे मिलाने के वास्ते न सही,
मगर एक बार देख तो लेती,
वो नज़रें मिला न सकी,
मेरी खामोशी उनको बुला न सकी,
कोई मेला लगा था
मेरे खालीपन के सैलाब में,
मछली बनकर भी मैं तड़पता रहा,
गहरी तालाब में,
उनकी बातों में झूम उठी,
महफ़िल महफ़िल सारी,
मैं पहुँचा वो चुप हो गए,
कोई शब्द न बचा जवाब में,
किसी ने सही कहा है,
ये इश्क़ भुलाने की चीज़ नहीं,
मैं इश्क़ में बदनाम भले हूँ,
पर आशिक़ी का मरीज़ नहीं,
हाँ उनकी यादों में एक एक कर,
हर हदें पार कर दी मैंने,
मगर उनका ही हूँ आज भी,
आदाओं के पीछे भागता बद्तमीज़ नहीं,
न जाने क्या कसूर था मेरा,
मुझे देखते उन्होंने नज़रें चुराई,
मेरे इश्क़ के मुकद्दर की दाज देती थी,
वही पहचान न पाई,
मैं रेस में दौड़ा तो था,
मगर मंजिल तक पहुंच न सका,
जो कभी इस दौड़ में शामिल न हुआ,
उसने जीत पाई।
- ऋषभ भट्ट ( क़िताब : मैं उसको ढूढूंगा अब कहां?)